नई दिल्ली. मदर टेरेसा एक ऐसा नाम जिसे दूसरो की सेवा के भावना के लिए हमेशा याद रखा जाएगा. रविवार को इस नाम के साथ एक खास उपाधि जुड़ जाएगी और वो उपाधि है संत की उपाधि. रविवार को मदर टेरेसा को वेटिकन सिटी में औपचारिक प्रक्रिया के बाद संत घोषित किया जाएगा लेकिन वहीं दूसरी तरफ वैटिकन सिटी के कट्टरपंथी धार्मिक समूह टेरेसा की आलोचना करते नजर आ रहे हैं.
वैटिकन सिटी के कट्टरपंथी समूह का दावा
टेरेसा के बारे इन लोगों का कहना है कि वह दूसरों की गरीबी और दुख का मजा लेती थी. वह कोई संत नहीं थी और न ही उनके साथ कुछ चमत्कार हुई थी वह बीमार रहकर मरना चाहती थी इसलिए उन्होंने अपना कोई इलाज नहीं करवाया.
मदर टेरेसा की पूरी कहानी
1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना करने वाली मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य (तत्कालीन उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य) की राजधानी स्कोप्जे में हुआ था. उन्होंने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना की थी. इस संगठन से दुनिया भर में तीन हज़ार से ज़्यादा नन जुड़ी हुई हैं. मदर टेरेसा ने कई आश्रम, गरीबों लिए किचन, स्कूल, कुष्ठ रोगियों की बस्तियां और अनाथ बच्चों के लिए घर बनवाए.
टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था. उनकी मां अल्बानियाई थीं और उनका परिवार कोसोवो से आया था. उनके पिता के मूल स्थान को लेकर भी विवाद है. ज्यादातर लोगों (खास तौर पर अल्बानिया में) का कहना है कि वह भी अल्बानियाई थे. लेकिन मेसेडोनिया के लोगों का कहना है कि वह एक अन्य बाल्कन जातीय समूह ‘व्लाच’ थे. दोनों बाल्कन देशों में मदर टेरेसा को लेकर किस कदर प्रतिस्पर्धा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दोनों ही देशों में मदर टेरेसा की मूर्तियां लगी हैं. सड़कों, अस्पतालों और अन्य स्मारकों के नाम भी उनके नाम पर रखे गए हैं.
बता दें कि पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा के दूसरे चमत्कार को मान्यता दे दी थी. इसके बाद मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने की संभावना और प्रबल हो गई थी. मदर टेरेसा को कोलकाता की झुग्गी बस्तियों में उनके काम के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. उनका 1997 में निधन हुआ था.