चण्ड-मुण्ड नाम के दो राक्षसों का वध करने के कारण मां का चामुण्डा नाम से विख्यात हुईं. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बसा मां का यह शक्तिपीठ अद्भुत शक्तियों का केंद्र है. मां काली के रूप में यहां देवी भक्तों की बुराईयों का नाश करती हैं. नवरात्र का सातवां दिन कालरात्री को समर्पित है तो आइए जानते हैं मां के इस अद्भुत धाम के बारे में...
कांगड़ाः हिमाचल प्रदेश में मां की शक्तिपीठों में से एक चामुण्डा देवी मंदिर अपनी अलौकिक शक्ति के लिए देश भर में मशहूर है. कांगड़ा जिले में स्थित यह देवी का यह धाम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहां शतचंडी का पाठ सुनना और सुनने से माँ की कृपा जल्द ही प्राप्त होती है. बंकर नदी के तट पर बसा यह मंदिर मां के सातवें और अनोखे रूप महाकाली को समर्पित है जो शत्रुओं का नाश और बुराईयों का अंत करती हैं. पौराणिक कथा के अनुसार यहां देवी सती के चरण गिरे थे.
माँ काली चामुण्डा क्यों कहलाती हैं ?
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी.
कैसे पहुंचे मां के धाम ?
चामुण्डा देवी मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो मंदिर से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके बाद आप कार से मंदिर तक की यात्रा कर सकत हैं. तो हीं सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटकों के लिए हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस सेवा है. माता का यह दिव्य धाम धर्मशाला से 15 किलोमीटर और ज्वालामुखी से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. रेल मार्ग मराण्डा पालमपुर से यह 20किमी की दूरी पर स्थित है. पठान कोट सभी प्रमुख राज्यों से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.