मोदी सरकार कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए तमाम प्रयास कर रही है लेकिन बैंक किसी न किसी तरह से अपने ग्राहकों से शुल्क वसूलने की कोशिश में जुटे हुए हैं. बैंक न्यूनतम राशि के अभाव में पैसे नहीं निकलने जैसे वाकयों का हवाला देकर ग्राहकों से बेवजह के शुल्क वसूल रहे हैं. डेबिट कार्ड से ट्रांजेक्शन फेल हो जाने पर भी बैंक खाताधारकों से डिक्लाइन चार्ज वसूल रहे हैं.
नई दिल्लीः केंद्र की मोदी सरकार डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देते हुए कैशलेस ट्रांजेक्शन के लिए तमाम प्रयास कर रही है लेकिन बैंक है कि किसी न किसी तरीके से अपने ग्राहकों से शुल्क वसूलने की कोशिश में लगे हुए हैं. डेबिट कार्ड से ट्रांजेक्शन फेल हो जाने पर डिक्लाइन चार्ज वसूले जाने का भी एक मामला सामने आया है. टाइम्स ग्रुप की खबर के अनुसार, देश का सबसे बड़ा बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ऑटोमेटेड टेलर मशीन (ATM) या पॉइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल पर डेबिट कार्ड स्वाइप करने के बाद ट्रांजेक्शन डिक्लाइन होने पर 17 रुपये (प्राइवेट बैंकों का अलग-अलग शुल्क है) वसूलता है.
आईआईटी बॉम्बे में गणित के प्रोफेसर आशीष दास ने बैंकों के विभिन्न शुल्कों पर कई रिसर्च रिपोर्ट्स तैयार की हैं. पूर्व में वह कानूनी नीतियों के बदलाव में भी अहम भूमिका निभा चुके हैं. आशीष दास कहते हैं, ‘खरीदारी के बाद नकदी रहित भुगतान (नॉन-कैश मर्चेंट ट्रांजैक्शन) के लिए डेबिट कार्ड के इस्तेमाल पर इतने बड़े जुर्माने का कोई मतलब नहीं है. इससे कार्ड या डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के सरकार की कोशिशों को कहीं से भी बल नहीं मिलता है. ऐसे चार्जेज वसूले जाने से डिजिटल पेमेंट करने वाले निराश होते हैं.’
रिपोर्ट के मुताबिक, डेबिट कार्ड से अगर ट्रांजेक्शन डिक्लाइन नहीं होता है तो भी बैंक आपसे शुल्क वसूलते हैं जबकि सरकार ने मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) की सीमा तय कर रखी है. MDR वह शुल्क होता है जो बैंक भुगतान स्वीकार करने वाले मर्चेंट्स से वसूलते हैं. इसके विपरीत बैंक अपने ग्राहकों को शाखा या एटीएम से पैसे निकालकर खरीदारी करने के बजाय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं. बकायदा केंद्र सरकार डिजिटल इंडिया का ख्वाब संजोते हुए लोगों को कैशलेस होने की दिशा में आगे बढ़ने की सलाह दे रही है.
दूसरी ओर बैंकों का इस पर तर्क है कि जिस तरह चेक डिक्लाइन करने पर जुर्माना लगाया जाता है, ठीक उसी तरह डेबिट कार्ड ट्रांजेक्शन डिक्लाइन होने पर भी शुल्क वसूला जाता है. चेक बाउंस होने का नियम ही असफल ईसीएस (इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विसेज) डेबिट ट्रांजेक्शन पर लागू होता है. यह दोनों लगभग एक ही प्रक्रियाएं हैं. प्रोफेसर आशीष दास कहते हैं कि जहां तक बात डेबिट कार्ड्स के गलत इस्तेमाल की है तो बैंकों को खाताधारक के अकाउंट में अपर्याप्त रकम के अभाव में हर महीने कम से कम दो मर्चेंट ट्रांजेक्शंस डिक्लाइन करने पर कोई चार्ज नहीं वसूलना चाहिए. उसके बाद अगर ऐसा होता है तो फिर खाताधारक पर जुर्माना लगाया जा सकता है.