देश में 1700 से अधिक मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ 3,045 आपराधिक मामले लंबित हैं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए एक शपथपत्र में इस बात का खुलासा किया है. आपराधिक छवि वाले नेताओं की इस फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश का सबसे पहला स्थान है. यूपी में सबसे ज्यादा विधायकों और सांसदों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है. यूपी के बाद तमिलनाडु, बिहार और पश्चिम बंगाल क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं.
नई दिल्लीः देश में 1700 से अधिक मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ करीब 3,045 आपराधिक मामले लंबित हैं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए एक शपथपत्र में इस बात का खुलासा किया है. आपराधिक छवि वाले नेताओं की इस फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश का सबसे पहला स्थान है. यूपी में सबसे ज्यादा विधायकों और सांसदों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है. यूपी के बाद तमिलनाडु, बिहार और पश्चिम बंगाल क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शीर्ष अदालत द्वारा मांगे गए आंकड़ों के जवाब में सरकार की ओर से प्रस्तुत शपथपत्र में दी गई जानकारी के अनुसार, यूपी में 248 सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं. वहीं तमिलनाडु में 178, बिहार में 144 और पश्चिम बंगाल में 139 विधायकों और सांसदों के खिलाफ क्रिमिनल केस चल रहे हैं. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में 100 से ज्यादा विधायकों और सांसदों की विभिन्न आपराधिक मामलों में जांच चल रही है. शपथपत्र में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि 2014 से 2017 के बीच करीब 1765 सांसदों और विधायकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि एक साल के भीतर इन सभी मामलों का निपटारा किया जाए. आंकड़ों की मानें तो इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया. दरअसल शपथपत्र के अनुसार, 1765 सांसदों और विधायकों के खिलाफ 3816 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें पिछले एक साल में कुल 125 मामलों का ही निपटारा हो पाया है. पिछले तीन वर्षों में कुल 771 मामलों का निपटारा हुआ है. 3045 मामले अभी भी लंबित हैं, जिनमें 539 मामलों के साथ यूपी पहले स्थान पर है. केरल, तमिलनाडु, बिहार और पश्चिम बंगाल क्रमशः हैं. पिछले साल दिसंबर में न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के निर्देशों के बाद कानून मंत्रालय ने यह शपथपत्र अदालत को सौंपा.
गौरतलब है कि वकील और समाजसेवी अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की है कि सजायफ्ता सांसदों और विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. जिसके बाद विशेष अदालतों की स्थापना के संबंध में निर्देश जारी करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार से सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की संख्या की जानकारी मांगी थी. साथ ही उन पर चल रहे मुकदमों की स्थिति के बारे में भी बताने को कहा था.
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