होलिका दहन के दिन पूर्ण पूजा विधि से पूजा की जाती है. होली का त्यौहार फाल्गुन मास की शुरुआत और नए धान की पैदावार के लिए महत्व भी रखता है. होलिका अग्नि में गेंहू की बालियों की आहुति का विशेष महत्व होता है. होलिका दहन में 7 बालियों की आहुति दी जाती है.
नई दिल्ली. होली का त्यौहार हिंदू धर्म के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है. होली से आठ दिन से पहले शुरू हो जाता है. जिसे होलाष्टक नाम से जाना जाता है. होलाष्टक से होलिका की तैयारी होना शुरू हो जाती है. इन दिनों लोग लकड़ियां इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं. होली की पूजा का खास महत्व इसीलिए होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस रात देवी देवताओं की शक्तियां जागृत रहती हैं.
होलिका दहन स्थल पर लकड़ियों का एक गठ्ठर खड़ा किया जाता है और पूजा वाले दिन कच्चा सूत लपेटकर 7 चक्कर लगाकर अपनी अलग अलग मनोकामनाएं मांगी जाती है. ये व्रत माताएं बच्चों के लिए भी करती हैं. इस दौरान गोबर के उपलों का प्रयोग किया जाता है और अंत में होलिका जलने के बाद राख को घर में लाया जाता है. ऐसा इसीलिए किए जाते हैं ताकि घर में सुख समृद्धि आए. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस राख को पैसे रखने के स्थान व कारोबार के स्थान पर रखते हैं तो कारोबार में लाभ और घर में बरकत आती है.
होली का त्यौहार फाल्गुन मास की शुरुआत और नए धान की पैदावार के लिए महत्व भी रखता है. हर परिवार अपने घर की सुख-समृद्धि की कामना के लिए होलिका दहन में गेहूं की बालियां भी डाली जाती हैं. होली पूजा की अग्नि में गेंहू की बालियां चढ़ाकर हम साल की सबसे पहली धान की फसल को ईश्वर को भेंट करते हैं. होलिका अग्नि में गेंहू की बालियों की आहुति का विशेष महत्व होता है. कहा जाता है कि होली की अग्नि में 7 बालियों की आहुति देनी चाहिए. 7 बालियों के पीछे का अर्थ ये है क्योंकि 7 अंक शुभ माना जाता है. इसीलिए सप्ताह में 7 दिन, विवाह में 7 फेरे लेने की परंपरा है. यही वजह है कि होलिका दहन में 7 बालियां होलिका में डाली जाती है. इस मौके पर बाजारों में खूब बालियां बिकती हैं.
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