नरेंद्र मोदी सरकार ने कहा- राफेल डील पर कांग्रेस के आरोप बेबुनियाद, डील में बरती गई पूरी पारदर्शिता

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा राफेल विमानों की डील में घोटाले के आरोपों को सरकार ने नकारा है. मोदी सरकार ने सफाई में कहा कि कांग्रेस के आरोप बेबुनियाद हैं. राहुल गांधी ने आरोप लगाए थे कि इस डील के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी जा रही. सरकार क्यों कुछ भी बताना नहीं चाहती. इसके अलावा राहुल गांधी ने कीमत को लेकर भी सवाल उठाए थे.

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नरेंद्र मोदी सरकार ने कहा- राफेल डील पर कांग्रेस के आरोप बेबुनियाद, डील में बरती गई पूरी पारदर्शिता

Aanchal Pandey

  • February 7, 2018 10:04 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. राफेल डील पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों पर सरकार ने अपना पक्ष रखा है. सरकार की तरफ से आए बयान में कांग्रेस द्वारा लगाए आरोपों को बेबुनियाद बताया है. बयान में कहा गया है कि राफेल डील में पूरी पारदर्शिता बरती गई है. कांग्रेस बगैर तथ्यों के आरोप लगा रही है. खुद कांग्रेस ने दस साल में इस डील पर कुछ नहीं किया. वायुसेना को ताकतवर बनाने के लिए पिछली सरकार ने कुछ नहीं किया.

सरकारी बयान के मुताबिक, कांग्रेस की 126 राफेल की डील के मुकाबले हमने अच्छी डील की है. इमर्जेंसी में हमने 36 राफेल को फ्लाई अवे कंडीशन में गवर्मेंट टू गवर्मेंट एग्रीमेंट के जरिए खरीदा है. मंत्रालय ने कहा कि ट्रांसफ़र ऑफ़ टेक्नोलोजी में काफ़ी समय लगता है और 36 राफ़ेल के लिए टीओटी करना सही नही था. डील के लिए पीएम मोदी के दौरे को लेकर कहा गया है कि पीएम के साथ जो डेलिगेशन गया थी उसमें सिर्फ़ डिफ़ेंस के अधिकारी थे, कोई बिज़नेस मैन नही था.

इतना ही नहीं, डील साईन होने से पहले पाँच बार दोनों देशों के अधिकारियों के बीच बैठकें हुई थीं. सीसीएस में वायुसेना के आधुनिकरण और ज़रूरत को लेकर चर्चा हुई थी. कांग्रेस का आरोप ग़लत है कि इस डील में रक्षा मंत्री और अधिकारियों को बाईपास किया गया है. संसद में राफेल डील पर कांग्रेस के हंगामे के बीच पीएम मोदी ने कांग्रेस पर जबदस्त प्रहार किया. वहीं, संसद भवन में आर्मी चीफ, एयर चीफ ने डिफेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण से मुलाकात की.

बता दें कि भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमानों के लिए 2016 में समझौता हुआ था. ये विमान फ्लाई अवे यानि फौरी तौर पर उड़ान भरने के लिए तैयार होंगे. कांग्रेस इस डील पर सवाल उठा रही है. सरकारी बयान के मुताबिक, ‘भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की जरूरतों के लिए 2002 में जो पहल की गई थी, वह केंद्र में पिछली सरकार के 10 साल के कार्यकाल में पटरी से उतर गई.

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