नई दिल्ली. एक तरफ मुस्लिम विरोधी इमेज सुधारने में जुटा RSS दिल्ली में बड़ी इफ्तार पार्टी कर रहा है तो दूसरी ओर केंद्र की राजनीति में सेकुलर दलों की अगुवाई करने वाली कांग्रेस ने अब इफ्तार पार्टी नहीं करने का फैसला किया है. देश में सूखा की हालत को देखते हुए इस साल कांग्रेस इफ्तार की दावत के बदले गरीबों के बीच राशन बांटेगी.
सुनने और पढ़ने में बहुत सीधा मामला लग रहा होगा लेकिन असल में ये उतना ही उलझा और पेचीदा फैसला है. मनमोमन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद से कांग्रेस पार्टी ने रमज़ान में इफ्तार पार्टी देने का काम उनके हवाले कर रखा था. 2004 के बाद से कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में कोई इफ्तार पार्टी नहीं रखी. ये पार्टियां मनमोहन सिंह बतौर पीएम देते रहे.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2015 में दिल्ली के अशोक होटल में इफ्तार की पार्टी रखी लेकिन वो राजनीतिक मायने में एक फ्लॉप शो साबित हुई. सोनिया की इफ्तार में कांग्रेसी नेताओं के अलावा जेडीयू से नीतीश कुमार, टीएमसी से डेरेक ओ ब्रायन और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ही आए थे.
सोनिया की इस इफ्तार पार्टी में ना तो समाजवादी पार्टी से कोई आया और ना ही वामपंथी दलों से कोई नेता पहुंचा. इफ्तार पार्टी के जरिए कांग्रेस जिस सेकुलर राजनीति में अपना वर्चस्व बचाए रखने का दांव चल रही थी उसी पार्टी ने सेकुलर राजनीति में उसके असर पर सवाल खड़ा कर दिया था.
2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस की हार के कारण खोजने के बाद एके एंटनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हिन्दुओं के मन में कांग्रेस का जरूरत से ज्यादा मुसलमान प्रेम खटक रहा है इसलिए पार्टी को शुद्ध सेकुलर यानी हिन्दू-मुसलमान को एक तरह से ट्रीट करना चाहिए.
कांग्रेस ने इफ्तार पार्टी से तौबा करने का जो फैसला किया है उसकी वजह इन दो चीजों में तलाशी जा सकती है. एक तो पिछले साल की इफ्तार पार्टी में कई पार्टियों के नेताओं का ना पहुंचना और दूसरा पार्टी की मुसलमान समर्थक इमेज को सुधारना.
और राजनीति का विधान देखिए कि ये सब तब हो रहा है जब मुसलमानों को अपने पास लाने की कोशिश में RSS की विंग मुस्लिम राष्ट्रीय मंच 2 जुलाई को संसद परिसर में एक भव्य इफ्तार पार्टी कर रही है जिसमें उसने पाकिस्तान समेत 140 देशों के राजनयिकों को न्योता दिया है.