वित्त मंत्री अरुण जेटली का बजट 2019 में मोदी सरकार की केंद्र में वापसी में बड़ी भूमिका अदा करेगा. वहीं अगर इस बार ये पासा उलटा पड़ा तो ये अभिलाषाएं धूल धूसरित भी हो सकती हैं.
नई दिल्ली. ये अरुण जेटली के लिए सबसे मुश्किल बजट है, उनका ये बजट 2019 में मोदी सरकार की वापसी में बड़ी भूमिका अदा करेगा और पासा उलटा पड़ा तो ये अभिलाषाएं धूल धूसरित भी हो सकती हैं. कोई कह रहा जैसा कि बाकी सरकारें करती रही हैं, ऐसे आखिरी फुल फ्लैज्ड बजट में कि पॉपुलिस्ट बजट बना दो, टैक्स रियायतें दे दो और जनता को खुश कर दो, चाहे आर्थिक सुधार बैकफुट पर आ जाएं, जेटली भी ऐसा ही करेंगे. तो कई दिग्गज ये भी कह रहे हैं कि अगर नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े फैसले लेने के वाबजूद सरकार इस आखिरी साल में कड़े कदमों से पीछे हटी तो अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से उतरनी तय है. ऐसे में अरुण जेटली का पास आखिर क्या उपाया है? कहा जा रहा है चूंकि वो मोदी के मंत्री हैं और खासे विश्वस्त भी तो ये बजट दोबारा सरकार बनाने के लिए क्रूशियल भी तो उनके बजट पर मोदी की छाप हो सकती है और चौंकाने के लिए मशहूर मोदी इस बजट में जेटली के जरिए कोई ऐसा तुरूप का इक्का फेंक सकते हैं, जिससे जनता तो खुश हो जाए लेकिन विरोधी चारों खाने चित हो जाएं.
ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर जेटली-मोदी की जोड़ी का ये तुरुप का इक्का क्या हो सकता है? मांग भी हो रही है और उम्मीद भी की जा रही कि जिस तरह नोटबंदी लगाने के बाद सरकार ने पिछले बजट में पहले स्लैब में जिस तरह इनकम टैक्स देने वालों को बड़ी रियायत दी थी, इस बार उसकी छूट ढाई लाख से बढ़ाकर तीन लाख कर सकते हैं. जाहिर है लोअर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास नौकरी करने वाले लोगों को इसका फायदा होगा लेकिन क्या ये तुरूप का ऐसा इक्का साबित हो सकता है, जिससे कि वो खुश होकर मोदी को 2019 के लिए भी उसी पुराने उत्साह से वोट दे दें, जैसे 2014 में दिया था. शायद नहीं तो आखिर इस मोर्चे जेटली क्या बड़ा ऐलान कर सकते हैं? कई बार टॉप लेवल पर इनकम टैक्स को खत्म करने पर ही विचार हो चुका है. वैसे भी इनडायरेक्स कोड तो जीएसटी के जरिए बदल ही गया है, और डायरेक्ट टैक्स कोड पर एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट मई में आनी है. ऐसे में बजट में कोई ऐलान ना करके ऐसा भी हो सकता है कि बाद में सरकार कोई बड़े बदलाव का ऐलान कर दे. चूंकि अरुण जेटली पहले ही पांच लाख तक की आय वालों को इनकम टैक्स के दायरे से बाहर रखने की बात कर चुके हैं, तो डायरेक्स टैक्स कोड में ये भी बदलाव हो सकता है. वैसे भी बजट में एक साल पहले कोई बड़ा ऐलान करने से जनता भूल भी सकती है और 2019 में शायद ही फायदा मिले.
वैसे बाबा रामदेव भी सभी तरह के टैक्सेज खत्म करके बैंक ट्रांजिक्शन के इकलौते टैक्स की वकालत कर चुके हैं, तो इस तरह का कोई दांव मोदी खेल सकते हैं ऐसा अभी दूर की कौड़ी ही लगती है. हालांकि जेटली बजट में कुछ तो ऐलान कर ही सकते हैं, जानकार मानते हैं कि पिछले बजट में 10 फीसदी के स्लैब को 5 फीसदी में बदल दिया गया था, उसके बाद सीधा 20 फीसदी का स्लैब है तो इस बार 10 फीसदी का एक और स्लैब का ऐलान हो सकता है. क्योंकि अगर 3 लाख तक की छूट दी गई तो 40 से 50 लाख टैक्सपेयर दायरे से बाहर निकल सकता है और सरकार को 35 हजार करोड़ रुपए की चपत तो लग ही सकती है, 2 करोड़ के टैक्स पेयर जो बढ़ने की बात हो रही है, सरकार का वो दावा भी कमजोर होता है. सो 10 फीसदी का स्लैब शुरू करके बीस फीसदी के एक बड़े तबके को 10 फीसदी के स्लैब में लाकर राहत दी जा सकती है. डायरेक्ट टैक्स कोड में बदलाव का फैसला जाहिर है नोटबंदी और जीएसटी जैसा ही हिला देने वाला होगा, और इन दोनों फैसलों की कितनी भी आलोचना हुई हो, लेकिन यूपी और गुजरात जीत बताती है कि आम लोग परेशान जरूर हुए, लेकिन मोदी से पूरी तरह विमुख नहीं हुए.
दूसरा जो बड़ा ऐलान ऐसा हो सकता है कि सोशल सेक्टर की किसी ऐसी बड़ी स्कीम का जो आम जनता को सीधे रियायत दे सके. यानी पब्लिक की जेब में सीधे पैसे पहुंचाने की जिम्मेदारी. बीच में सरकारी हलकों में चर्चा भी हुई थी कि सोशल सिक्योरिटी के तौर पर केन्द्र सरकार एक बड़ी हैल्थ स्कीम लेकर आ रही है, कभी चर्चा चली मुफ्त ये बेहद कम प्रीमियम में पांच लाख तक के हैल्थ बीमा की तो कभी कहा गया कि एक ऐसा स्कीम सरकार ला सकती है कि जिससे सभी नागरिकों के सारे हैल्थ चैकअप, टेस्ट साल में एक बार फ्री में होंगे. पीएम मोदी को चौंकाना काफी आता है, वैसे भी सरकार आधार लिंकिंग के जरिए काफी गैस सब्सिडी बचाकर, क्रूड ऑयल के दामों में कमी के चलते टैक्स बढ़ाकर, नोटबंदी के बाद टैक्सपेयर्स बढ़ाकर काफी खजाना भर चुकी है. तो जाहिर है अगर ऐसा कोई ऐलान हो भी जाए, जेटली कोई तुरूप का इक्का छोड़ भी दें तो कोई हैरत की बात नहीं होगी.
एग्रीकल्चर ग्रोथ दर में पिछले साल के 4.9 फीसदी के मुकाबले 2.1 फीसदी की ग्रोथ होने से भी सरकार चिंता में हैं, तो ऐसे में क्या ऐसा बड़ा कदम उठाया जाए कि किसानों के चेहरे पर खुशी आ सके, इसके लिए भी सरकार ने काफी मंथन किया है. मनरेगा जैसी कोई बड़ी योजना ही इस दिशा में तुरुप का इक्का हो सकती है, लेकिन जेटली और मोदी दोनों में से ही कभी इस बारे में कोई इशारा नहीं किया है. इनफ्रास्ट्रक्चर, रेलवे और बिजली, के क्षेत्र में सरकार ने वाकई में जमीन पर काम किया है, ऐसे में सरकार इन फील्ड्स को ढीला नहीं छोड़ सकती. सरकार कह भी चुकी है कि बहुत जल्द ट्रेन में वेटिंग टिकट का सिस्टम खत्म हो जाएगा, यानी सबको टिकट मिलेगी. जाहिर है ऐसा कोई ऐलान आम आदमी को खुश करने के लिए तुरुप का इक्का ही साबित होगा, अगर हो जाए तो. सरकार के सामने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की भी बड़ी चुनौती है, उनसे सम्बंधित भी कोई बड़ी योजना का ऐलान मुमकिन है.
देश में जॉब ग्रोथ की दर को तेज करने और इनवेस्टमेंट को बढ़ाने के लिए सरकार कई बार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर चीन की तरह जोर देने की बात कर चुकी है. फिर भी छोटी मोटी राहतों और दिल्ली मुंबई कारीडोर जैसी योजनाओं की चर्चा तक सिमट जाती हैं, ऐसे में ये भी एक ऐसा फील्ड है, जहां सरकार कोई बड़ा और चौंकाने वाला कदम उठाने का ऐलान कर सकती है. ये अलग बात है कि जेटली की पोटली और मोदी के माइंड में क्या है, ये बस उनको पता है. लेकिन ये तय है कि अगर हिला देने वाला कोई तुरुप का इक्का इस बजट में नहीं आया तो मोदी के लिए 2019 की जंग काफी मुश्किल हो जाएगी.
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