दारुल उलूम देवबंद के मुफ्ती अतहर कासमी ने फतवा दिया है कि मुस्लिम महिलाओं को फुटबॉल बैच नहीं देखना चाहिए. ऐसा करना इस्लाम के खिलाफ है. हाफ पैंट में खिलाड़ियों के घुटने दिखते हैं. कासमी ने अपने फतवे में कहा कि अगर महिलाएं फुटबॉल मैच देखेंगी तो उनका ध्यान खिलाड़ियों की जांघों पर ही रहेगा. ऐसे में उनका मैच देखने का क्या फायदा?
लखनऊ. दारुल उलूम देवबंद के मुफ्ती ने मुस्लिम महिलाओं को लेकर विवादित फतवा जारी किया है. यूपी के सहारनपुर स्थित दारुल उलूम देवबंद के मुफ्ती अतहर कासमी ने कहा है कि फुटबॉल खेलते पुरुषों को देखना मुस्लिम महिलाओं के लिए हराम है. मुफ्ती ने कहा कि नग्न घुटनों के साथ पुरुषों को फुटबॉल खेलते देखना इस्लाम के नियमों के विरुद्ध है. इसके साथ ही मुफ्ती अतहर कासमी ने उन पुरुषों को भी कठघरे में खड़ा किया है जो अपनी पत्नियों को टीवी पर फुटबॉल मैच देखने की इजाजत देते हैं. मुफ्ती ने शुक्रवार को उन पुरुषों को लताड़ लगाई जो अपनी पत्नी को टीवी पर फुटबॉल मैच देखने देते हैं.
अपने धर्मोपदेश में मुफ्ती ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को फुटबॉल नहीं देखना चाहिए क्योंकि उसमें पुरुष खिलाड़ियों के घुटने दिखाई देते हैं. पुरुषों को लताड़ लगाते हुए उन्होंने कहा कि क्या आपको शर्म नहीं आती? क्या आप ऊपरवाले से नहीं डरते हैं? आप उन्हें (अपनी बीवियों को) ऐसी चीजें क्यों देखने देते हैं. कासमी का यह फतवा ऐसे वक्त में आया है जब सुन्नी बहुल सऊदी अरब में महिलाओं को स्टेडियम में फुटबॉल मैच देखने की परमीशन दे दी है.
कासमी ने अपने फतवे को सही ठहराते हुए कहा कि महिलाओं को फुटबॉल मैचों को देखने की जरूरत ही क्या है? फुटबॉल खिलाड़ियों की जांघों को देखकर उन्हें क्या मिलेगा. मैच देखते वक्त वे स्कोर भूलकर सिर्फ खिलाड़ियों की जांघों की तरफ ही देखती रहेंगी. कासमी के इस फतवे की लखनऊ की मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ता साहिरा नसीह ने कड़ी आलोचना करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है. साहिरा ने कहा कि इसका मतलब यह है कि मुस्लिम महिलाओं को ऐथलेटिक (दौड़), टेनिस और तैराकी जैसे खेल भी नहीं देखने चाहिए. किसी पुरुष को खेलते हुए देखना किसी महिला के लिए अनैतिक कैसे हो सकता है. फिलहाल इस मसले पर बहस छिड़ी हुई है.