नई दिल्ली. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव विधेयक मामले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आरोप पर पलटवार किया है. पात्रा ने इसे आम आदमी पार्टी के ‘उड़ता मंसूबों’ की क्रैश लैंडिंग का बेहतरीन उदाहरण बताया है. इसके अलावा उन्होंने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रपति का अपमान किया है, केजरीवाल बोल रहे हैं कि सरकारी काम करने के लिए उन्हे खर्चा चाहिए, दिल्ली में विधायकों की तनख्वाह सबसे ज्यादा है. ये सेवा नहीं मेवा है, 400 प्रतिशत की तनख्वाह बढ़ोत्तरी क्या है.
संबित पात्रा का आरोप
पात्रा ने केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए कहा कि केजरीवाल की सरकार आम जनता की समस्याओं को निपटाने की बजाय सुबह-शाम मोदी-मोदी का जाप करने में जुटी है. आखिर केजरीवाल काम कब करते हैं? उन्होंने यह भी कहा कि ‘आप’ एक आरोप लगाने वाली पार्टी बनकर रह गई है. ‘मैं विनती करता हूं कि आम आदमी पार्टी काम करे.’
‘AAP सेवा नहीं बल्कि मेवा ले रहे हैं’
केजरीवाल बोल रहे हैं कि सरकारी काम करने के लिए उन्हे खर्चा चाहिए, दिल्ली में विधायकों की तनख्वाह सबसे ज्यादा है. ये सेवा नहीं मेवा है, 400 प्रतिशत की तनख्वाह बढ़ोत्तरी क्या है. सभी को संविधान के दायरे में रहकर काम करना होता है, केजरीवाल उससे ऊपर नहीं जा सकते,केजरीवाल कानून पहले तोड़ते हैं फिर जब पकड़े जाते हैं तो शोर मचाते हैं.
क्या है पूरा मामला?
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ‘आप’ सरकार की उस बिल को मंजूरी देने से मना कर दिया था, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) के 21 विधायकों के संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से अलग करने का प्रस्ताव था. जिसे लेकर केजरीवाल ने इस घटनाक्रम पर कडी प्रतिक्रिया दी थी. साथ ही पीएम मोदी पर निशाना भी साधा था. केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि वह लोकतंत्र का सम्मान नहीं करते और ‘आप’ से डरते हैं.
क्या हैं नियम?
संविधान के नियम के मुताबिक लाभ के पद पर बैठा कोई शख्स विधायिका का सदस्य नहीं हो सकता. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को 2006 में इसी वजह से संसद से इस्तीफा देना पड़ा था. तब सोनिया गांधी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष होने के साथ ही रायबरेली से सांसद थी. विपक्ष के एतराज जताये जाने के बाद सोनिया ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया और रायबरेली से दोबारा जीतकर सांसद बनीं थी. इस दौरान सरकार ने संविधान में संशोधन करके राष्ट्रीय सलाहकार परिषद सहित 45 पदों को लाभ के पद से अलग कर दिया.
इसके अलावा कांग्रेस के एक नेता की शिकायत पर राज्यसभा सांसद जया बच्चन की संसद सदस्यता खतरे में पड़ गई थी. तब जया बच्चन राज्यसभा की सांसद होने के साथ ही यूपी फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थी. चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से उनकी सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की, जिसे मान लिया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं जया बच्चन को वहां से भी निराश होना पड़ा था. विवाद के बाद तब 2006 में यूपी सरकार ने लाभ के पद को फिर से परिभाषित करते हुए 79 पदों को लाभमुक्त कर दिया था.