नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शरीरिक रूप से अक्षम लोगों को दिव्यांग कहने और उसके बाद विभाग का नाम बदलने को लेकर हिन्दी साहित्य को ऑनलाइन लोकप्रियता दिलाने में सक्रिय कविता कोष और गद्य कोष के संस्थापक ललित कुमार ने एक गंभीर सवाल उठाया है.
ललित कुमार ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए कहा है कि विकलांगों पर जबर्दस्ती दिव्यांग शब्द थोपा जा रहा है और वो सिर्फ इसलिए कि देश के प्रधानमंत्री ने ऐसा कह दिया है. नीचे पढ़ें उनका फेसबुक पोस्ट.
मैं विकलांग हूँ. “दिव्यांग” नहीं. मैं समझ सकता हूं कि कुछ व्यक्तियों को विकलांग शब्द पर आपत्ति हो सकती है लेकिन “दिव्यांग” शब्द से कोई अपवाद ही सहमत होगा. मैंने पहले भी इस बारे में लिखा है कि दिव्यांग शब्द को बिना किसी सलाह-मशविरे के थोपा जा रहा है.
विकलांगता के संदर्भ में यह पूरी तरह से एक अतार्किक शब्द है. दुनिया के अन्य देश हमारी इस अतार्किकता पर हंसेंगे. मैं नहीं चाहता कि मेरे विदेशी मित्र कहें कि “Oh really Lalit! They think you’re divine because you’re a polio survivor?! Come on, buddy, gimme a break!”
सरकार ने अब Department of Empowerment of Persons with Disabilities के नाम को बदलकर हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों नामों में “दिव्यांग” शब्द शामिल करने का फ़ैसला लिया है. इसके लिए जनता से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया. मंत्रालय और मंत्री जी इस बदलाव पर केवल इस लिए तुले हैं क्योंकि यह प्रधानमंत्री की “इच्छा” है.
प्रधानमंत्री ने एक शब्द बोल दिया तो क्या वह कानून बन जाएगा? इस तरह के बदलावों से पहले बाकायदा सलाह ली जाती है. क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञो से Consultation meetings होती हैं. लेकिन इस केस में ऐसा कुछ नहीं हुआ.
शब्द इसलिए थोपा जा रहा है क्योंकि यह प्रधानमंत्री के मुख से निकला है. मोदी सरकार का विकास का एजेंडा अच्छा है लेकिन विकास की राह में शब्दों से क्यों खेला जा रहा है? हमें फ़ैंसी शब्दों की नहीं बल्कि सुविधाओं की ज़रूरत है. मंत्री थावरचंद गहलोत जी विकलांगजनों के जीवन को आसान बनाने की ओर ध्यान दीजिए.
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