दिल्ली के प्रगति मैदान मे चल रहे इंटरनेशनल बुक फेयर में संघ से जुड़े सुरुचि प्रकाशन ने ना सिर्फ अपनी स्टाल लगाई है बल्कि संघ के संगठन कई अलग अलग परिचर्चाएं और बुक लांच के कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे हैं. लव जेहाद पर किताब लांच करने के बाद संघ नेता बोले मार्क्सवादी रुपये में 50 पैसे तो माओवादी 100 पैसे होते हैं.
नई दिल्ली. संघ से जुड़़े सुरुचि प्रकाशन ने दिल्ली के प्रगति मैदान मे चल रहे इंटरनेशनल बुक फेयर में ना केवल अपनी स्टाल लगाई है बल्कि संघ से जुड़े संगठन कई तरह की परिचर्चाएं और बुक लांच कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे हैं. “कलम खामोश क्यों” विषय पर बुधवार को एक परिचर्चा आयोजित की गयी. प्रगति मैदान में बुक फेयर के चौथे दिन प्रेरणा मीडिया एवं एनबीटी ने राष्ट्रीय साहित्य संगम के तहत ये परिचर्चा आयोजित की, जिसमें संघ से जुड़े संगठन प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंद कुमार, संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर और दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफ़ेसर प्रेरणा मल्होत्रा ने भाग लिया. इस मौके पर लव जेहाद पर केन्द्रित कहानी संग्रह पर आधारित डॉ. वंदना गाँधी की पुस्तक ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ का विमोचन किया गया, यह पुस्तक अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी है.
श्री जे. नंद कुमार ने इस विषय पर कहा कि ब्रेक इंडिया ब्रिगेड और मेक इंडिया ब्रिगेड का यह एक बहुत बड़ा युद्ध है. भारत के आगे बढ़ने से यहाँ के बहुत से लोग चिंतित हैं. भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र भाव माना गया हैं, किन्तु एक योजना के तहत हिन्दू लड़कियों के धर्मांतरण के उद्देश्य से देश तोड़ने के हथियार के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है तो इसका विरोध देश की एकता के लिए स्वाभाविक है. मीडिया में हिन्दू पीड़ित और मुस्लिम पीड़ितों के लिए अलग-अलग दृष्टि व होने वाली चर्चा पर उन्होंने चिंता प्रकट की. अख़लाक और जुनैद की हत्या में जिस तरह गलत तथ्य के साथ तथाकथित वामपंथी मीडिया ने महीने भर प्राइम टाइम पर चर्चा चलाकर हिन्दू संगठनों को कटघरे में खड़ा किया, उससे देश को तोड़ने का षड्यंत्र उजागर होता है, क्योंकि इन घटनाओं के वास्तविक कारण और थे.
संघ नेता नंद कुमार ने दिल्ली में डॉ. नारंग की हत्या को मीडिया में ज्यादा तवज्जो ना मिलने, वामपंथी रुझान के पत्रकारों द्वारा बीजेपी के दलित उत्पीड़न की घटनाओं को मुद्दा बनाने और गैर बीजेेपी सरकारों के ऐसे अपराधों को नजरअंदाज करने की भी बात की. उनके मुताबिक इनके निशाने पर हिंदुत्व रहता है. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद, लेनिनवाद, माओवाद एक ही सिक्के के अलग अलग मूल्य हैं. मार्क्सवादी रुपये में 50 पैसे तो माओवादी 100 पैसे.
उन्होंने बताया कि राष्ट्र हित में जिनकी कलम खामोश है वह भारत के शत्रु हैं, हमें देश विरोध की किसी घटना पर खामोश नहीं रहना चाहिए, देश को एक रखने के लिए सबको अपनी कलम का उपयोग करना चाहिए. इससे पूर्व श्री प्रफुल्ल केतकर ने बताया कि हम राष्ट्र के बारे में सोचे बिना मानवतावादी नहीं हो सकते. ब्रिटिश काल से चली आ रही व्यवस्था के अंतर्गत कलम को षड्यंत्रपूर्वक खामोश रखा गया है.
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