IPC 497 के तहत व्यभिचार के मामले में महिला के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों से सहमति नहीं, संविधान पीठ करेगी सुनवाई

IPC 497 में व्यभिचार के लिए सिर्फ पुरुष के लिए ही सजा का प्रावधान है. केरल के एक्टिविस्ट जोसफ साइन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर IPC 497 की वैधता को चुनौती दी है. इस मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ करेगी. इसमें सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों पर भी विचार किया जाएगा.

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IPC 497 के तहत व्यभिचार के मामले में महिला के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों से सहमति नहीं, संविधान पीठ करेगी सुनवाई

Aanchal Pandey

  • January 5, 2018 7:45 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. भारतीय दंड संहिता (IPC) 497 के तहत व्यभिचार यानी Adultery के मामलों में क्या महिला के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है? इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बैंच करेगी. कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों पर फिर से विचार करना होगा. 1954 में चार जजों की बेंच और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है जिसमें आईपीसी 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करता. कोर्ट ने कहा कि जब संविधान महिला और पुरूष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक केसों में ये अलग क्यों? कोर्ट ने कहा कि जीवन के हर तौर तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है तो इस मामले में अलग से बर्ताव क्यों? जब अपराध को महिला और पुरुष दोनों की सहमति से किया गया हो तो महिला को सरंक्षण क्यों दिया गया.

दरअसल आईपीसी का सेक्शन 497 एक विवाहित महिला को सरंक्षण देता है भले ही उसके दूसरे पुरुष से संबंध हों. यह सेक्शन महिला को पीड़ित ही मानता है भले ही अपराध को महिला और पुरुष दोनों ने किया हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस प्रावधान की वैधता पर सुनवाई करेगा. कोर्ट ने कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में महिला के साथ अलग से बर्ताव नहीं किया जा सकता जब दूसरे अपराध में लैंगिक भेदभाव नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति महिला के साथ वस्तु की तरह बर्ताव नहीं कर सकता और महिला को कानूनी कार्रवाई से सरंक्षण मिलना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि ये पुराना प्रावधान लगता है जब समाज में प्रगति होती है तो पीढियों की सोच बदलती है.

कोर्ट ने कहा कि इस बारे में नोटिस जारी किया जाता है और आपराधिक केसों में सामान्य तटस्थता दिखानी चाहिए. दरअसल केरल के एक्टीविस्ट जोसफ साइन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर IPC 497 की वैधता को चुनौती दी है. उनका कहना है कि पहले के तीन फैसलों में इसे बरकरार रखा गया और संसद को कानून में संशोधन करने की छूट दी गई. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने IPC के सेक्शन 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.

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