भारत ने ‘मेड इन इंडिया’ स्पेस शटल किया सफल लॉन्च, ये हैं फायदे

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने सोमवार को अपना पहला स्पेस शटल स्पेश शटल RLV-TD लॉन्च किया है. इसमें खास बात यह है कि यह शटल पूरी तरह से 'मेड-इन-इंडिया' का प्रयास है. साथ ही इसे दोबारा से इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 7 बजे लॉन्च किया गया है.

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भारत ने ‘मेड इन इंडिया’ स्पेस शटल किया सफल लॉन्च, ये हैं फायदे

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  • May 23, 2016 5:44 am Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago
श्रीहरिकोटा. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने सोमवार को अपना पहला स्पेस शटल स्पेश शटल RLV-TD लॉन्च किया है. इसमें खास बात यह है कि यह शटल पूरी तरह से ‘मेड-इन-इंडिया’ का प्रयास है. साथ ही इसे दोबारा से इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 7 बजे लॉन्च किया गया है. 
 
RLV-TD का मुख्य कार्य
विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के डायरेक्टर के सिवन ने बताया कि RLV-TD का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह पहुंचाना और फिर वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करना है. शटल को एक ठोस रॉकेट मोटर से ले जाया जाएगा. नौ मीटर लंबे रॉकेट का वजन 11 टन है.’
 
स्पेश शटल का फायदा
 इसरो के इंजीनियर्स का मानना है कि सैटेलाइट्स को ऑर्बिट में सैटल करने की लागत कम करने के लिए रियूजेबल रॉकेट काफी कारगर साबित हो सकता है.  साइंटिस्ट्स की मानें तो रियूजेबल टेक्नोलॉजी के यूज से स्पेस में भेजे जाने वाले पेलोड की कीमत 2000 डॉलर/किलो (1.32 लाख/किलो) तक कम हो जाएगी. व्हीकल के एडवान्स्ड वर्जन को स्पेस के मैन्ड मिशन में यूज किया जा सकेगा.
 
एलीट क्लब में भारत शामिल
इसी के साथ भारत अब एलीट क्लब में शामिल हो गया है. अभी ऐसे रियूजेबल स्पेस शटल बनाने वालों के क्लब में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान ही हैं. चीन ने कोशिश तक नहीं की है. रूस ने 1989 में ऐसा ही स्पेस शटल बनाया है. इसने सिर्फ एक बार ही उड़ान भरी है. अमेरिका ने पहला आरएलवी टीडी शटल 135 बार उड़ाया। 2011 में यह खराब हो गया.
 
बंगाल की खाड़ी में उतारा जाएगा
ये एक रियूजेबल लॉन्च व्हीकल है. ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इसरो एक स्पेस क्राफ्ट लॉन्च कर  रहा है, जिसमें डेल्टा विंग्स होंगे. लॉन्च के बाद ये स्पेस क्राफ्ट बंगाल की खाड़ी में वापस उतर आएगा. इस स्पेस क्राफ्ट के बनने में 5 साल का समय लगा और 95 करोड़ रुपये का खर्च आया है. ये फ्लाइट इस स्पेस क्राफ्ट की हायपर सोनिक एक्सपेरिमेंट स्पीड पर री-एंट्री को झेल पाने की क्षमता का आकलन करेगी.

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