गुजरात जहां से मोदी जैसे गरीब चाय बेचने वाले को पीएम बनने के लिए सीढ़ियां मिली, उस गुजरात ने इस बार के विधानसभा चुनाव में चुन चुन कर अमीरों को वोट दिया. जो जितना अमीर उसके उतने वोट. जो जितना गरीब उसके हारने के चांस उतने ही ज्यादा दिखे है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार इस चुनाव में अमीरों के जीतने का औसत गरीबों से अधिक है.
नई दिल्ली: गुजराती मूल तौर पर व्यापार पसंद हैं और गुजराती के बारे मे मशहूर है कि हर आदमी वहां पैसा कमाना बचपन से ही सीख जाता है. एक ऐसा राज्य जहां मोदी जैसे गरीब चाय बेचने वाले को पीएम बनने के लिए सीढ़ियां दी, उस गुजरात ने इस बार के विधानसभा चुनाव में चुन चुन कर अमीरों को वोट दिया. जो जितना अमीर उसका उतने वोट. जो जितना गरीब उसके हारने के चांस उतने ही ज्यादा. ये हम नहीं कर रहे बल्कि भारत में इलेक्शन सुधार के लिए काम कर रही संस्था एसोसिएशन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट के आंकड़े हैं.
अगर पार्टी और जाति की पसंद आप किनारे रख दें तो आप पाते हैं कि 182 कुल विधानसभा सीटों में से 75 ऐसी सीटें थीं. जहां वोटर्स ने चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट्स में से जो सबसे ज्यादा अमीर था, उसको जिताया. यानी अमीरों के जीतने का औसत 41 फीसदी था. तो 38 फीसदी ऐसे कैंडिडेट चुनावों में जीते हैं, जो अपनी अपनी विधानसभा के उम्मीदवारो में दूसरे सबसे अमीर कैंडिडेट थे. यानी अमीर फैक्टर तो है ही, लेकिन वो अपने से अमीर कैंडिडेट से भी जीत पाए तो इसके लिए पार्टी, जाति या उनकी लोकप्रियता जैसे दूसरे फैक्टर जिम्मेदार रहे होंगे लेकिन उनकी अमीरी को नजरअंदाज करना मुश्किल है.
जबकि इन विधानसभा चुनावों में जीतने वाले करीब 12 फीसदी ऐसे कैंडिडेट भी हैं, जो अपनी अपनी विधानसभाओं में तीसरे सबसे अमीर कैंडिडेट थे, उन्होंने भी अपने से दो दो ज्यादा पैसेवालों को मात दी, लेकिन वो भी कम अमीर नहीं थे. जबकि चौथे स्थान पर रहने वाले केवल 2 फीसदी ही अमीर थे. ऐसे देखा जाए तो इस बार गुजरात विधानसभा में जितने भी उम्मीदवार पहुंचे हैं, वो घर से काफी मजबूत हैं और जाहिर है चुनाव जीतने के लिए उनके धन बल या प्रभाव की भी बड़ी भूमिका रही होगी, और उससे भी ज्यादा गुजरातियों की उस मनोदशा की भी भूमिका रही होगी, जो गरीबों से ज्यादा अमीर कैंडिडेट्स को पसंद करती है. मोदी के गुजरात में ये वाकई चौंकाने वाली बात है.
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार गुजरात विधानसभा के लिए जितने कैंडिडेट चुनावों में उतरे उनमें से 35 कैंडिडेट ऐसे भी थे, जिनके ऊपर कर्ज था और 190 ऐसे भी थे जिनके पास कोई एक लाख से भी कम की चल अचल सम्पत्ति थी. बड़े दुर्भाग्य की बात ये है कि इनमें से कोई भी नहीं जीता. जबकि उसके उलट इस चुनाव में खड़े होने वाले 373 करोड़पति उम्मीदवारों में से 36 प्रतिशत यानी 136 कैंडिडेट चुनाव जीतकर विधायक भी बन गए. जबकि जिनके पास 50 लाख से ज्यादा और 1 करोड़ से कम सम्पत्ति थी ऐसे भी 13.13 फीसदी उम्मीदवार जीतकर एमएलए बन गए. लेकिन जिनकी सम्पत्ति एक लाख से ज्यादा और पचास लाख से कम थी, वो केवल 1.94 फीसदी उम्मीदवार ही जीत पाए. यानी पैसा घटता गया और जीतने के चांसेज कम होते चले गए. इसका मतलब अगर आज की तारीख में गुजरात से कोई चाय वाला चुनाव में उतरकर विधायक बनने की ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाता.
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