सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योर्तिलिंगों में सबसे पहला माना जाता है, मंदिर में लगा वाणस्तम्भ बताता है कि उस जगह से अंटाकर्टिका तक सीधा समुद्र है, कोई जमीन नहीं है. ये मंदिर कितना पुराना है कोई नहीं जानता. लेकिन ये मंदिर प्रतीक है गुलामी की यादों का, हर सदी में इसे हमलावरों ने लूटा, पहले हमला सिंध के गर्वनर अल जुनैद ने सातवीं शताब्दी में किया, उसके बाद कई बार महमूद गजनबी ने लूटा.
अहमदाबाद : सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योर्तिलिंगों में सबसे पहला माना जाता है, मंदिर में लगा वाणस्तम्भ बताता है कि उस जगह से अंटाकर्टिका तक सीधा समुद्र है, कोई जमीन नहीं है. ये मंदिर कितना पुराना है कोई नहीं जानता. लेकिन ये मंदिर प्रतीक है गुलामी की यादों का, हर सदी में इसे हमलावरों ने लूटा, पहले हमला सिंध के गर्वनर अल जुनैद ने सातवीं शताब्दी में किया, उसके बाद कई बार महमूद गजनबी ने लूटा. उसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के सिपहसालार उलूग खान से लेकर औरंगजेब तक ने इस मंदिर को लूटा और ध्वस्त किया. शायद ही कोई मंदिर या प्राचीन भारतीय भवन इस कदर हमलावरों के निशाने पर आया हो और इसीलिए सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का फैसला किया और भरी सभा में इसका ऐलान किया. आज भले ही राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर जा रहे हों, लेकिन पीएम मोदी का ये आरोप कि पंडित नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनरोद्धार का विरोध किया था, ऐतिहासिक तथ्यों के हिसाब से ठीक है और अरसे तक कांग्रेस इस बात को अपनी सेकुलर छवि को मजबूत बनाने के लिए हर मंच से बोलती भी आई है, लेकिन अब देश की फिजां बदल चुकी है.
दरअसल सोमनाथ मंदिर आजादी के समय जूनागढ़ रियासत में आता था. लेकिन जूनागढ़ के नवाब ने भारत में मिलने से साफ इनकार कर दिया और भारतीय सेना के दवाब में भागकर पाकिस्तान चला गया. तो चार दिन बाद सरदार पटेल ने वहां का दौरा किया औऱ एक सभा में लोगों से पूछा भी कि आप हिंदुस्तान के साथ रहना चाहते हो या पाकिस्तान के? तो हजारों हाथ एक साथ खड़े हुए और एक ही सुर मे बोले हिंदुस्तान, हिंदुस्तान. अगले दिन यानी 13 नवम्बर 1947 को पटेल ने नवांनगर के जाम साहब और आरछी रियासत के शामलदास गांधी के साथ सोमनाथ मंदिर का दौरा किया, मंदिर की हालत देखकर सरदार दुखी हो गए और वहीं ऐलान किया कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार हम करवाएंगे. उसी जगह पर जाम साहब ने एक लाख रुपए और शामलदास गांधी ने इक्वावन हजार रुपए के दान का ऐलान कर दिया. उस वक्त उनके साथ कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी थे. बात जब दिल्ली पहुंची तो पंडित नेहरू ने उनसे ऐतराज जताया कि सरकार कैसे किसी धर्मविशेष के धर्मस्थल का निर्माण कर सकती है.
हालांकि सोमनाथ मंदिर से अपनी ऐतिहासिक रथयात्रा शुरू करने वाले लाल कृष्ण आडवाणी अपनी किताब ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के पेज नंबर 196 पर लिखते हैं कि, ‘’नेहरू मंत्रिमंडल ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी और साथ ही ये भी सारा व्यय केन्द्र सरकार वहन करेगी”, वो ये भी बताते हैं कि कैसे उसी शाम को सरदार पटेल, केएम मुंशी और वीएनल गाडगिल गांधीजी से मिलने पहुंचे, तो गांधीजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया, साथ ही ये भी कहा कि मंदिर निर्माण का व्यय जनता को वहन करने दो. हालांकि सरदार पटेल तो पहले से ही ट्रस्ट बनाने के हिमायती थे. उन्होंने मंदिर के पुनरोद्धार की जिम्मेदारी केएम मुंशी को दे दी.
जबकि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर एल के आडवाणी से बिलकुल अलग बात अपनी किताब ‘एक धर्मनिरपेक्ष रूढिवादी की स्वीकारोक्ति’ में लिखी है, वो लिखते हैं कि गांधीजी की हत्या के बाद जब केएम मुंशी ने सोमनाथ मंदिर के पुनरोद्धार की बातें फिर से करनी शुरू कीं तो नेहरू ने साफ कह दिया कि ये व्यक्तिगत आस्था का सवाल है, सरकार कुछ नहीं कर सकती. जब केएम मुंशी ने याद दिलाया कि 1947 की केबिनेट में ये फैसला लिया गय़ा है और भवन निर्माण मंत्रालय को भी आदेश दिया तो अय्यर के मुताबिक पंडित नेहरू नाराज हो गए और केबिनेट की बैठकों का ब्यौरा निकाला जिसमें केएम मुंशी का दावा झूठा निकला. अय्यर के मुताबिक तब निजी ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण का काम किया गया. हालांकि अय्यर को नेहरू को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए मुंशी और पटेल को झूठा साबित करना, आज की तारीख में कांग्रेस के लिए मुश्किल भरा हो सकता है. सावधानी उन्होंने यही बरती कि पटेल का नाम झूठों में नहीं लिखा, लेकिन पीएम से झूठ बोलने के लिए मुंशी पर एक्शन क्यों नहीं हुआ, इस पर वो चुप्पी साध जाते हैं.
जबकि आडवाणी लिखते हैं कि पहले गांधीजी और फिर 1950 में सरदार पटेल की मौत के बाद ही पंडित नेहरू के रुख में परिवर्तन आया था और उन्होंने 1951 में तत्तकालीन खाद्य और रसद मंत्री केएम मुंशी को केबिनेट मीटिंग के बाद बुलाकर कहा कि, मैं नहीं चाहता कि आप सोमनाथ मंदिर के पुनरोद्धार की कोशिश करें, ये हिंदू नवजागरणवाद है. मुंशीजी खामोश रहे और वहां से चले गए. बाद में मुंशी ने जो जवाब दिया, वो उनकी किताब ‘पिलग्रिमेज टू फ्रीडम’ में उपलब्ध है, उन्होंने लिखा- ‘’कल आपने हिंदू नवजागरणवाद का उल्लेख किया था, मंत्रिमंडल में आपने मेरे सोमनाथ से जुड़ाव पर उंगली उठाई. मुझे खुशी है कि आपने ऐसा किया, क्योंकि मैं अपने किसी भी विचार या कार्य को अप्रकट रखना नहीं चाहता हूं. मैं आपको विश्वास दिला सकता हूं कि भारत का समस्त जनमानस आज भारत सरकार द्वारा प्रायोजित सोमनाथ के पुनरोद्धार की योजना से बहुत प्रसन्न है. इतनी प्रसन्नता उसे हमारे द्वारा किए गए किसी भी कार्य़ से नहीं मिली है.‘’ उस पत्र को पढ़कर भारतीय रियासतों के एकीकरण में अहम भूमिका निभाने वाले अधिकारी वीपी मेनन ने मुंशी को पत्र लिखा, ‘’मैंने आपके अदभुत पत्र को देखा है, जो बातें आपने पत्र में लिखी हैं, उनके लिए मैं तो जीने और आवश्यकता पड़े तो मैं तो मरने के लिए भी तैयार हूं’’.
बात यहीं नहीं रुकी, रोमिला थापर की किताब ‘सोमनाथ, द मैनी वॉइसेज ऑफ हिस्ट्री’ के मुताबिक एक अखबार में जब ये खबर छपी कि मंदिर निर्माण के लिए सौराष्ट्र सरकार पांच लाख रुपए दे रही है तो पंडित नेहरू ने वहां की सरकार को खत लिखकर नाराजगी जताई. इधर सोमनाथ मंदिर के प्रांगड़ मे बनाई गई मस्जिद को कई किलोमीटर दूर स्थानांतरित किया गया. चालुक्य शैली में जब भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया तो केएम मुंशी ने राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद से अनुरोध किया कि मंदिर का लोकार्पण करें और ज्योर्तिलिंग स्थापित करने का विधिविधान भी करें. उम्मीद के विपरीत राजेन्द्र बाबू तैयार हो गए. पंडित नेहरू ने फिर आपत्ति जताई कि कैसे एक धार्मिक कार्य के लिए कोई राष्ट्रपति जा सकता है? बाबू राजेन्द्र प्रसाद का जवाब था कि, ‘’अगर किसी मस्जिद या चर्च से ये बुलावा आता तो भी मैं जाता क्योंकि ये भारतीय सेक्युलरिज्म का मूल है, हमारा देश ना धार्मिक है और ना धर्मविरोधी. आडवाणी जी ने भी राष्ट्रपति के इस बयान का उल्लेख किया है.
गुजरात विधानसभा चुनाव: सोमनाथ मंदिर पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी