गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी के चुनाव में BJP की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) को करारा झटका लगा है. छात्र परिषद के चुनाव में ABVP प्रत्याशियों को सभी विभागों में हार का सामना करना पड़ा है. 'स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़' में निर्दलीय उम्मीदवार दिलीप कुमार और 'स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़' में केरल निवासी निर्दलीय प्रत्याशी अरविंद नामपूथिरी ने जीत हासिल की है.
अहमदाबादः गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) को गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी के चुनाव में करारा झटका लगा है. गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र परिषद चुनाव में बीजेपी की छात्र इकाई ABVP को करारी हार का सामना करना पड़ा है. छात्र संघ चुनाव में दलित और लेफ्ट विंग समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने हर विभाग में भारी मतों से जीत दर्ज की है. यूनिवर्सिटी के सबसे बड़े और सबसे प्रतिष्ठित विभाग ‘स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़’ में निर्दलीय उम्मीदवार दिलीप कुमार ने जीत दर्ज की है. ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़’ में केरल निवासी निर्दलीय प्रत्याशी अरविंद नामपूथिरी ने जीत हासिल की है.
यूनिवर्सिटी के अन्य विभागों में भी निर्दलीय उम्मीदवार अर्जुन पटेल और विपिन सिंह ने जीत हासिल की है. सूबे में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद ABVP को करारी शिकस्त मिलना बीजेपी के लिए काफी नुकसानदायक संकेत माना जा रहा है. गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अलग-अलग विभागों में ABVP प्रत्याशियों को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा है. दलित और लेफ्ट विंग के छात्र संगठन जैसे बिरसा अंबेडकर फूले स्टूडेंट एसोसिएशन (BAPSA), NSUI समर्थित LDSF और यूनाइटेड ओबीसी फोरम ने यूनिवर्सिटी चुनाव का बहिष्कार किया था लेकिन उन्होंने ABVP के खिलाफ अभियान चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दलित और लेफ्ट विंग छात्र संगठनों ने कैंपस में ABVP के खिलाफ दो दिवसीय धरना भी दिया था. ऑल इंडिया प्रोगेसिव वीमेन्स एसोसिएशन (AIPWA) की सचिव और JNU की पूर्व उपसचिव कविता कृष्णन ने कहा कि ABVP की इस हार में तीन संदेश हैं.
पहला ये कि देश का मिजाज अब बदल रहा है. दूसरा, विकास का दावा करने वाला गुजरात मॉडल अब एक्सपोज हो रहा है और तीसरा ये कि गुजरात के युवा वर्ग का तेजी से मोहभंग हो रहा है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति अब उतनी प्रभावी नहीं रह गई है, जितनी कि पहले कभी हुआ करती थी. बताते चलें कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की वजह से गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन के चुनाव नहीं होते हैं लेकिन यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट काउंसिल जरूर है. यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले हर कॉलेज से दो प्रतिनिधि भेजे जाते हैं. एक प्रतिनिधि नामित और एक चुनाव द्वारा चुना गया सदस्य छात्र परिषद का सदस्य होता है.
जानकारों की मानें तो ABVP की हार का सबसे बड़ा कारण संगठन की गिरती हुई लोकप्रियता का परिणाम है. गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी ही नहीं बल्कि देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ABVP को हार का सामना करना पड़ा है. इस हार से साबित हो रहा है कि युवाओं के बीच बीजेपी और आरएसएस की लोकप्रियता गिर रही है. बताते चलें कि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में हुए छात्र संघ चुनाव में भी ABVP को हार का सामना करना पड़ा था. अध्यक्ष पद पर निर्दलीय उम्मीदवार राहुल पांडेय ने जीत हासिल की थी. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ABVP को समाजवादी छात्र परिषद ने बुरी तरह हराया था. JNU और DU में ABVP को करारी शिकस्त मिली. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी लेफ्ट विंग संगठनों ने मिलकर ABVP को मात दी थी.
JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर हुए हमले की SIT जांच की मांग पर सुनवाई करेगा SC