इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में इंदिरा हारने के बाद कुछ वक्त तक सदमे में रहीं, कुछ महीनों तक तो इसी ऊहापोह में रहीं कि क्या राजनीति छोड़कर हिमालय में बसा जाए, फिर उन्हें लगा कि ये चाहकर भी नहीं हो सकता. क्योंकि तमाम केसेज जनता पार्टी ने उन पर और संजय गांधी पर लाद दिए हैं. ऐसे में लड़ना ही होगा.
नई दिल्लीः इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में इंदिरा हारने के बाद कुछ वक्त तक सदमे में रहीं, कुछ महीनों तक तो इसी ऊहापोह में रहीं कि क्या राजनीति छोड़कर हिमालय में बसा जाए, फिर उन्हें लगा कि ये चाहकर भी नहीं हो सकता. क्योंकि तमाम केसेज जनता पार्टी ने उन पर और संजय गांधी पर लाद दिए हैं. ऐसे में लड़ना ही होगा. देश के कुछ हिस्सों में दौरान करने के बाद उन्हें लगा कि लोगों को वापस अपने पाले में खींचा जा सकता है. इधर आपसी मनमुटाव में जनता पार्टी सरकार मे भी फूट साफ दिख रही थी. ऐसे में अब इंदिरा का निशाना थी जनता पार्टी की सरकार.
संजय गांधी ने राजनारायण से दोस्ती गांठ ली और इंदिरा ने चौधरी चरण सिंह से रिश्ते सुधारे. राजनारायण ने मोराराजी देसाई पर हमला बोलना शुरू कर दिया, सीधे उनके बेटे पर करप्शन के आरोप और मोरारजी पर नेपोटिज्म के आरोप लगाने शुरू कर दिए. इधर इंदिरा ने हेमवती नंदन बहुगुणा से भी सम्पर्क स्थापित कर लिया. आलम ये हुआ कि राजनारायण ने खुले आम स्पीकर से खुद के लिए विपक्ष में बैठने के लिए सीट मांगी और नई पार्टी के नाम का ऐलान किया जनता दल सेकुलर.
चरण सिंह भी देसाई के विरोध में थे, फिर भी डिप्टी पीएम बने रहे. वाई वी चाह्वाण से 11 जुलाई के लिए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रख दिया, चरण सिंह को उनके ज्योतिषी ने बता दिया था कि वो पीएम बनने वाले हैं. देसाई को इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन चरण सिंह भी 24 दिन ही सीएम रह पाए. दिलचस्प बात ये थी कि राजनारायण ही इंदिरा की सत्ता गिराने की बड़ी वजह बने और मोरारजी सरकार गिराने में भी राजनारायण ने ही पहल की. किस कांग्रेस नेता ने की थी इंदिरा गांधी को हिमालय में बसने के लिए अपनी कॉटेज ऑफर? जानने के लिए देखिए हमारा ये शो विष्णु शर्मा के साथ
कैसे एक हाथी के जरिए इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी ने पलट दी चाल