कांग्रेस का विभाजन 1969 में जब हुआ तो कांग्रेस (R) पूरी तरह से इंदिरा को समर्पित थी. अब विरोध के स्वर नहीं बचे थे, सारे पुराने कांग्रेस नेता कांग्रेस (O) मे चले गए थे. ऐसे में इंदिरा के लिए थोड़ी राह आसान थी लेकिन 'यंग टर्क्स' के नाम से मशहूर युवा नेताओं का एक गुट बड़ी तेजी से उभरा, जिसमें चंद्रशेखर, मोहन धारिया और कृष्णकांत जैसे नेता थे, जो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जरिए आए थे.
नई दिल्लीः कांग्रेस का विभाजन 1969 में जब हुआ तो कांग्रेस (R) पूरी तरह से इंदिरा को समर्पित थी. अब विरोध के स्वर नहीं बचे थे, सारे पुराने कांग्रेस नेता कांग्रेस (O) मे चले गए थे. ऐसे में इंदिरा के लिए थोड़ी राह आसान थी लेकिन ‘यंग टर्क्स’ के नाम से मशहूर युवा नेताओं का एक गुट बड़ी तेजी से उभरा, जिसमें चंद्रशेखर, मोहन धारिया और कृष्णकांत जैसे नेता थे, जो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जरिए आए थे.
जमीन से उठे इन नेताओं को मंजूर नहीं था कि जिन रियासतों को भारत में शामिल किया गया है, उनके वारिसों को लाखों रुपए के ‘प्रिवी पर्स’ और ‘गन सैल्यूट’ जैसी शान-ओ-शौकत दी जाए. इंदिरा पर पार्टी के अंदर दबाव बनाया गया, तो इंदिरा ने ‘प्रिवी पर्स’ के खिलाफ संविधान में संशोधन करना स्वीकार कर लिया. लेकिन दोनों सदनों में इसके लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए था. मोहन धारिया ने प्रस्ताव रखा, संशोधन विधेयक लोकसभा में तो पास हो गया लेकिन राज्यसभा में दो तिहाई वोटों के लिए एक वोट की कमी रह गई.
दो साल के लिए पूरा मामला गड्ढे में चला गया. ऐसे में इंदिरा जब 1971 का चुनाव जीतकर तीसरी बार पीएम बनीं तो फिर से ‘प्रिवी पर्स’ खत्म करने का संविधान संशोधन विधेयक दोनों सदनों में लाया गया और इस बार वो पास हो गया. इंदिरा के खाते में ये एक बड़ी उपलब्धि थी, इस संविधान संशोधन के जरिए वो दावा कर सकती थीं कि उनके शासन में किसी को भी विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है.
‘प्रिवी पर्स’ के मुद्दे पर क्या थी मोरारजी देसाई की राय, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.