इंदिरा गांधी के लिए 1967 के चुनावों में जीत और सिंडिकेट के नेताओं की हार के बावजूद मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थी. कामराज भले ही चुनाव हार गए थे, लेकिन अभी भी कांग्रेस प्रेसीडेंट पद पर उनके करीबी एस निंजालिंगप्पा थे. दबाव में इंदिरा को मोरारजी देसाई को डिप्टी पीएम और फाइनेंस मिनिस्टर तो बनाना पड़ा था, लेकिन वो सहज नहीं हो पा रही थीं. ऐसे में इंदिरा को एक मौका भाग्य से मिला, अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भारत के राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन की मौत हो गई.
नई दिल्लीः इंदिरा गांधी के लिए 1967 के चुनावों में जीत और सिंडिकेट के नेताओं की हार के बावजूद मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थी. कामराज भले ही चुनाव हार गए थे, लेकिन अभी भी कांग्रेस प्रेसीडेंट पद पर उनके करीबी एस निंजालिंगप्पा थे. दबाव में इंदिरा को मोरारजी देसाई को डिप्टी पीएम और फाइनेंस मिनिस्टर तो बनाना पड़ा था, लेकिन वो सहज नहीं हो पा रही थीं. ऐसे में इंदिरा को एक मौका भाग्य से मिला, अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भारत के राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन की मौत हो गई, वीवी गिरी उस वक्त वाइस प्रेसीडेंट थे, उनको कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया.
सिंडिकेट चाहता था कि उनके बीच के ही नेता नीलम संजीव रेड्डी को प्रेसीडेंट बना दिया जाए, जबकि वो पहले से लोकसभाध्यक्ष थे. इंदिरा को ये डर था कि कहीं सिंडिकेट की पसंद का राष्ट्रपति बन गया तो कल को उन्हें गद्दी से उतारकर मोरारजी की ताजपोशी की जा सकती है. ऐसे में उन्होंने जगजीवन राम का नाम कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में रखते हुए गांधीजी के उस जन्मशती वर्ष में दलित को सर्वोच्च अधिकार देने के सपने की याद दिलाई. लेकिन सिंडिकेट के नेताओं के आगे इंदिरा गांधी की एक ना चली और नीलम संजीवा रेड्डी को कांग्रेस का ऑफिशियल प्रेसीडेंट बना दिया गया.
इधर वीवी गिरी ने प्रेसीडेंट की पोस्ट के लिए निर्दलीय ही नामांकन कर दिया. सीजेआई मो. हिदायुल्लाह को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया. सिंडिकेट ने ये भी ऑफर किया कि गिरि को लोकसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है. माना जाता है कि गिरी को खड़ा करने में परदे के पीछे से इंदिरा गांधी की ही भूमिका थी. इंदिरा ने अपनी चाल चली और बतौर लोकसभा में कांग्रेस सदस्यों का नेता होने के चलते कांग्रेस सदस्यों के लिए व्हिप जारी करने से साफ मना कर दिया. कुल 163 कांग्रेसी सांसदों ने वीवी गिरी को वोट दिया और कांग्रेस शासित 12 राज्यों में से 11 राज्यों में बहुमत भी रेड्डी को मिला.
इधर इंदिरा को आसानी सिंडिकेट के इस फरमान से भी हो गई कि जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के कैंडिडेट सीडी देशमुख को दूसरी प्राथमिकता का वोट दिया जाए. इंदिरा ने चुनाव को लेफ्ट बनाम राइट देकर गिरी के सपोर्ट को नैतिक बल भी दिया. इधर जीत वीवी गिरी की हुई और उधर अपनी ही पार्टी के कैंडिडेट को हराकर इंदिरा भी जीत गईं.
इस पूरे राष्ट्रपति कैंडिडेट विवाद से इंदिरा को मिले भारत रत्न का क्या है नाता, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.