पटना. आंशिक शराबबंदी गत शुक्रवार से लागू होने के बाद बिहार के ग्रामीण इलाकों में हजारों देसी शराब की दुकानें बंद हो गईं. अब नीतीश सरकार ने राज्य में ताड़ी की बिक्री पर भी बैन लगा दिया है. गरीबों की बीयर के रूप में मशहूर ताड़ी पर बैन लाखों बिहारी ग्रामीणों के लिए बुरी खबर है. यह ताड़ के पेड़ से निकाली जाती है और प्राकृतिक पेय के रूप में इस्तेमाल होती रही है.
देसी शरब की बिक्री पर रोक लगने से लाखों लोग ताड़ी पर निर्भर हो गए थे, लेकिन अब जब इस पर भी रोक लग गई है तो विरोध की भी प्रबल आशंका बन गई है. नीतीश सरकार के फैसले के अनुसार ताड़ी बेचने वालों को गिरफ्तार किया जाएगा. लेकिन कोई व्यक्ति सिर्फ अपने उपभोग के लिए पेड़ से ताड़ी निकालता है तो सरकार को कोई आपत्ति नहीं होगी.
उधर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया. उन्होंने कहा कि देसी शराब के बाद ताड़ी की बिक्री पर रोक लगाना अनुचित है. मांझी ने कहा, “ताड़ी प्राकृतिक पेय है. इसका इस्तेमाल दवा के रूप में होता है. मैंने भी 15 दिनों तक ताड़ी का सेवन किया है. ताड़ी के व्यापार से अधिकांश दलित और गरीब लोग जुड़े हैं इसलिए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.”
बता दें कि पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1 अप्रैल, 2016 से शराब पर बैन लगाने का वादा किया था. जिस दिन बिहार आबकारी (संशोधन) विधेयक पारित हुआ उस दिन को नीतीश ने ऐतिहासिक बताया. नीतीश ने कहा कि लोगों की शराब पीने की आदत छुड़ाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे, क्योंकि इससे गरीब लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं.
भारत में निर्मित विदेशी शराब की बिक्री से अब भी हालांकि सरकार को 2000 करोड़ रुपये की आमदनी होगी. पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कर्पूरी ठाकुर ने भी 1977-78 में शराब बंदी लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन सफल नहीं हुए.