प्रणब दा की जीवनी, बाबरी विध्वंस नरसिम्हा राव की नाकामी

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी जीवनी के दूसरे वॉल्युम "द टर्ब्यलंट इयर्स: 1980-96" में कई बातों को शेयर किया है. उन्होंने 1980 और 1990 के दौर की कई बड़ी घटनाओं की छिपी बातों को साझा किया है.

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प्रणब दा की जीवनी, बाबरी विध्वंस नरसिम्हा राव की नाकामी

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  • January 28, 2016 1:12 pm Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago
नई दिल्ली. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी जीवनी के दूसरे वॉल्युम “द टर्ब्यलंट इयर्स: 1980-96” में कई बातों को शेयर किया है. उन्होंने 1980 और 1990 के दौर की कई बड़ी घटनाओं की छिपी बातों को साझा किया है.
 
प्रणब ने अहम घटनाओं में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बात रखी है जिसमें उन्होंने कहा है कि  पीएम पद पर होने के बावजूद नरसिम्हा राव इस घटना का रोक नहीं पाए और यह उनकी सबसे बड़ी नाकामी है. प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब में इस बात का भी जिक्र किया है कि बाबरी विध्वंस से भारत और भारत के बाहर मुस्लिमों की भावनाएं किस कदर आहत हुईं.
 
किताब का एक हिस्सा
 
6 दिसंबर, 1992 को मैं बॉम्बे में था और तब जयराम रमेश प्लानिंग कमिशन में मेरे ओएसडी थे. लंचटाइम के वक्त उन्होंने मुझे फोन कर बताया कि बाबरी मस्जिद तोड़ दी गई है.’ मैं भरोसा नहीं कर पा रहा था कि मैं सुन क्या रहा हूं. ऐसे में मैं जयराम से लगातार पूछता रहा कि आखिर कोई तोड़ कैसे सकता है. हालांकि उन्होंने बड़े धैर्य के साथ इस घटना के बारे में पूरी जानकारी दी. मुझे उसी दिन शाम में दिल्ली लौटना था लेकिन बॉम्बे में तनाव में का माहौल बन चुका था.
 
महाराष्ट्र के गृह सचिव ने मुझे फोन किया और बताया कि मेरे लिए एक रक्षा दल और एक पाइलट कार की व्यवस्था कर दी गई है. एयरपोर्ट का रूट कुछ संवेदनशील इलाकों से जाता था. मैं एयरपोर्ट के लिए निकला. मेरे साथ एक पुलिस जीप थी जो कि मेरे कार के सामने थी और एक ऐम्बैस्डर थी जिसमें सादे कपड़े में पुलिसमैन मेरे पीछे से चल रहे थे. एक पर्सनल सिक्यॉरिटी ऑफिसर मेर साथ कार में बैठा था.’
 
रास्ते में मैंने एक गाड़ी में वकील राम जेठमलानी को देखा. वह व्यग्रतापूर्वक मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे. मैंने अपनी कार रुकवाई और कहा कि मुझे फॉलो करें. ऐसे में वह भी सिक्यॉरिटी पर्सनल से कवर हो गए. मैं एयरपोर्ट के तरफ बढ़ चुका था. मैंने देखा कि सड़क के किनारे लोगों का समूह खड़ा है. सड़क पर पत्थर और ईंट बिखरे पड़े थे. इससे साफ था कि हमलोग के गुजरने से पहले हिसंक झड़पें हुई थीं. अगले दिन अखबारों से पुष्टि हो गई कि उन इलाकों में लोगों ने गुस्सा निकाला था.
 
बाबरी विध्वंस एक विश्वासघात था. इस वारदात से सभी भारतीयों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. यह एक लंपटई थी जिसके जरिए धार्मिक तानेबाने को नष्ट किया गया. इसका एक राजनीतिक अंत हुआ. इसके वारदात से भारत और भारत के बाहर मुस्लिमों की भावनाएं आहत हुईं. इस घटना ने भारत की सहिष्णु छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया. बहुलतावादी राष्ट्र के रूप में भारत में अब तक सभी धर्म एक साथ शांति और सद्भावना के साथ रहते थे. यहां तक कि महत्वपूर्ण इस्लामिक देशों ने बाद में इस पर मुझसे आपत्ति भी जतायी. इन देशों के नेताओं ने कहा कि इस तरह एक मस्जिद के साथ जेरुसलम में भी नहीं हुआ जबकि यहां धार्मिक संघर्ष सदियों से हैं.
 
ज्यादातर लोग इस मामले में पीवी नरसिम्हा राव को ब्लेम करते हैं. मैं उस वक्त कैबिनेट का हिस्सा नहीं था. ऐसे में मैं बाबरी मस्जिद के मुद्दों से जुड़े फैसलों में शामिल नहीं था. हालांकि इस मामले में मैं आश्वस्त था कि भारत सरकार पूरी मजबूती से इसका सामना करेगी. इसमें बहुत विकल्प नहीं थे. केंद्र सरकार किसी भी चुनी हुई राज्य सरकार को आसानी से बर्खास्त नहीं कर सकती थी क्योंकि बाद में बाबरी मस्जिद को लेकर कुछ भी होता तो सारा संदेह उसी पर आता.
 
उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल इस मामले में राष्ट्रीय एकता परिषद में गंभीर आश्वासन दिया था बल्कि सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र भी दाखिल किया था. हालांकि लोगों का कहना था कि केंद्र सरकार को इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को धारा 356 के तहत पदस्थ कर देना चाहिए. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. आखिर राष्ट्रपति शासन को संसद के मंजूरी कैसे मिलती? कांग्रेस पार्टी के पास के राज्यसभा में बहुमत नहीं था.
 
बाबरी मस्जिद को टूटने से नहीं रोक पाना पीवी नरसिम्हा राव की सबसे बड़ी नाकामी थी. उन्हें इस टफ टास्क को लेकर दूसरी राजनीति पार्टियों के साथ बातचीत करनी चाहिए थी. तब उत्तर प्रदेश में बेहद अनुभवी नेता एनडी तिवारी थे. उनसे हालात समझने चाहिए थे. तत्कालीन गृह मंत्री एस. बी. चव्हाण मध्यस्थ की भूमिका में थे लेकिन उभरते हुए इस संकट के भावनात्मक पहलू से वह अनभिज्ञ रहे. रंगजारजन कुमारमंगलम इस मामले में गंभीरता से काम कर रहे थे लेकिन वह युवा थे. वह अपेक्षाकृत कम अनुभव वाले थे और पहली बार राज्य मंत्री बने थे.
 
बाबरी विध्वंस के बाद मामला नाटकीय रूप से बदला. सीताराम केसरी ने अजीब स्थिति उत्पन्न की थी. कैबिनेट मीटिंग में वह अचानक रोने लगे. मैं भी उस मीटिंग में मौजूद था. मैंने उनसे कहा, ‘यहां अतिनाटकीयता की कोई जरूरत नहीं है. तब आप सभी कैबिनेट का हिस्सा थे और इनमें से कुछ लोग सीसीपीए के मेंबर भी थे. सारे फैसले कैबिनेट और सीसीपीए की बैठक में लिए गए. बाबरी विध्वंस सामूहिक जवाबदेही है. इसके लिए केवल प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ही जिम्मेदार नहीं हो सकते.
 
बाद में पीवी नरसिम्हा राव के साथ मेरी मीटिंग हुई. उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था. मैं उन पर फूट पड़ा. क्या आपको किसी ने इसके खतरों से आगाह नहीं कराया? क्या आप बाबरी विध्वंस के बाद ग्लोबल प्रभाव का अंदाजा लगा सकते हैं? कम से कम अब आपको सांप्रदायिक तनाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए. मुस्लिमों के मन में बने डर को शांत करने की जरूरत है.
 
पीवी को जब मैं इतना कुछ सुना रहा था तो वह मेरी तरफ देख रहे थे. उनके चेहरे पर कोई इमोशन नहीं था. लेकिन मैं उन्हें जानता था क्योंकि उनके साथ कई दशकों तक काम किया था. मुझे उनके चेहरे को पढ़ने की जरूरत नहीं थी. मैं उनकी उदासी और निराशा को समझ सकता था. इतना कुछ होने के बाद मैं एक दिन हैरान रह गया. 17 जनवरी 1993 को उन्होंने मुझे कैबिनेट में जॉइन करने लिए फोन किया.

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