पठानकोट. पंजाब में महज पांच महीने के अंदर दूसरे बड़े आतंकी हमले को रोका जा सकता था. रिपोर्ट्स के मुताबिक सेना और पुलिस में बेहतर तालमेल की स्थिति से पठानकोट और इससे पहले हुए गुरुदासपुर हमले को रोका जा सकता था.
एक जनवरी को गुरुदासपुर के एसपी के पठानकोट में अपहरण के बाद सेना लगातार पुलिस से इस मामले को उसे सौंपने कहती रही लेकिन पुलिस शाम तक टालती रही और दो जनवरी की सुबह हमला ही हो गया.
SP की गाड़ी हमले में हुई इस्तेमाल
गुरुदासपुर के एसपी सलविंदर सिंह पठानकोट इलाके में एक गुरुद्वारा पर मत्था टेकने गए थे जब इन आतंकवादियों ने उनकी गाड़ी के साथ उन्हें अगवा कर लिया. आतंकियों को नहीं पता था कि उन्होंनें पुलिस अधिकारी को उठा लिया है. थोड़ी देर बाद आतंकवादियों ने एसपी को छोड़ दिया था लेकिन गाड़ी लेकर चले गए.
रात होने के बाद सेना से मदद मांगी पंजाब पुलिस ने
एसपी की वह गाड़ी पठानकोट एयरबेस से महज आधा किलोमीटर दूर बरामद हुआ और तब से ही सेना के अधिकारी पंजाब पुलिस से एसपी का किडनैप केस उसे सौंपने की मांग करते रहे लेकिन पंजाब पुलिस इसके लिए फौरन तैयार नहीं हुई. पूरे दिन पंजाब पुलिस के आला अधिकारी इसी पर मंथन करते रहे कि एसपी अपहरण मामले की जांच में सेना की मदद ली जाए या अपने स्तर पर ही निपटा जाए.
गृह मंत्रालय ने किया हस्तक्षेप
केंद्रीय गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद शाम 6 बजे चंडीगढ़ पुलिस मुख्यालय से निर्देश मिलने के बाद पठानकोट पुलिस ने एसपी अपहरण मामले की जांच में सेना से मदद की मांग की. कागजी औपचारिकता पूरी करने में पुलिस और सेना को समय लग गया और फिर अंधेरा हो जाने के कारण सेना आसपास के इलाकों में सर्च ऑपरेशन नहीं कर सकी. सेना हेलिकॉप्टर और ग्रांउड फोर्स के जरिए एक साथ सर्च ऑपरेशन करना चाहती थी इसलिए ऑपरेशन को सुबह तक के लिए रोक दिया गया और सुबह हमला हो गया.