Studio Ghibli: आजकल सोशल मीडिया पर घिबली स्टाइल की तस्वीरें बनाने का चलन जोरों पर है. लोग चैटजीपीटी, गूगल जेमिनी और मेटा एआई जैसे टूल्स की मदद से अपनी घिबली इमेज तैयार कर इंटरनेट पर शेयर कर रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अनूठी कला शैली के पीछे के दिग्गज स्टूडियो घिबली के सह-संस्थापक मियाजाकी हयाओ एआई जनरेटेड तस्वीरों के सख्त खिलाफ थे? उन्होंने इसे ‘जीवन का अपमान’ तक करार दिया था.
घिबली कला की पहचान आज पूरी दुनिया में है और इसका पूरा श्रेय स्टूडियो घिबली को जाता है. इस स्टूडियो की नींव 1985 में जापान में मियाजाकी हयाओ इसाओ ताकाहाटा, तोशियो सुजुकी और यासुयोशी तोकुमा ने रखी थी. घिबली जापानी एनिमी कला का एक रूप है. जिसमें पात्रों को तस्वीरों के जरिए जीवंत किया जाता है. स्टूडियो की खासियत यह है कि यहां एनिमेशन कंप्यूटर से नहीं बल्कि हाथों से तैयार किए जाते हैं. 40 साल बाद भी यह परंपरा कायम है. जिसका सबसे बड़ा श्रेय मियाजाकी हयाओ को जाता है. उनकी मशहूर फिल्में जैसे ‘स्पिरिटेड अवे’, ‘माय नेबर टोटरो’ और ‘प्रिंसेस मोनोनोके’ दर्शकों के दिलों को छूती हैं. इसके अलावा वह मंगा श्रृंखला ‘नौसिका ऑफ द वैली ऑफ द विंड’ के लिए भी जाने जाते हैं.
2016 में वायरल हुए एक वीडियो में मियाजाकी ने एआई जनरेटेड एनिमेशन की कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने कहा ‘मैं इस तरह की चीजें देखकर रोमांचित नहीं हो सकता. इसे बनाने वाले लोग दर्द की भावना को नहीं समझते. मैं इसे लेकर बेहद निराश हूं और कभी भी अपनी कला में इस तकनीक को अपनाना नहीं चाहूंगा. मेरे हिसाब से यह जीवन का अपमान है.’ उनका मानना है कि कला में भावनाएं, अनुभव और संवेदनाएं तब झलकती हैं. जब इंसान खुद इसे रचता है. एआई इन गहरे मानवीय पहलुओं को पकड़ने में असमर्थ है.
आज के दौर में जहां एनिमेशन का ज्यादातर काम कंप्यूटर पर हो रहा है. मियाजाकी ने हाथ से बनाई गई कला को जिंदा रखा. उनके लिए कला सिर्फ तकनीक नहीं बल्कि इंसानी आत्मा का प्रतिबिंब है. एआई की लोकप्रियता के बावजूद वह इसे कला के लिए खतरा मानते हैं. उनका कहना है कि मशीनें कभी भी इंसानी संवेदनाओं की गहराई को नहीं समझ सकतीं.
एआई के बढ़ते प्रभाव ने दुनिया भर में चर्चा छेड़ दी है. कुछ इसे रचनात्मकता की नई क्रांति मानते हैं तो मियाजाकी जैसे दिग्गज इसे कला की आत्मा के लिए हानिकारक बताते हैं. उनका यह रुख हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या तकनीक सचमुच इंसानी रचनात्मकता का विकल्प बन सकती है?