कांकेर. छत्तीसगढ़ के कांकेर नगर में सेलेराम का पेट पिछले डेढ़ साल से एक ऐसी सुंदरी भर रही है, जिसके कारनामे की एक अलग पहचान है. ये ‘सुंदरी’ कोई महिला नहीं बल्कि एक बंदरिया का नाम है.
ये सेलेराम के बुढ़ापे का सहारा है जिसके साथ वे खेल-तमाशा दिखा कर अपना और अपनी पत्नि का गुजारा करते हैं. वैसे तो सेलेराम के पांच लड़के, पांच लड़कियां और 28 नाती पोते हैं. लेकिन उन्होंने संकल्प लिया है कि जब तक शरीर में जान है तब तक वह अपनी मेहनत की कमाई ही खाएंगे.
सेलेराम का कहना है कि वे अपने बच्चों पर बोझ नहीं बनना चाहते है. वे अपनी जिंदगी स्वाभिमान के साथ जीना चाहते हैं ना कि बोझ बन कर. यही वजह है कि वह अब भी अपने जीवन-यापन के लिए मेहनत करते हैं.
कांकेर नगर के निवासी सेलेराम अपनी पत्नि इंदिरा मंडावी (68) के साथ रहते हैं. सेलेराम बताते हैं कि वे दूर दराज के क्षेत्रों से बंदरिया खरीद कर लाते हैं और कुछ साल बाद उसे जंगल में छोड़ आते हैं. फिलहाल सुंदरी उनके साथ है जिसे वे डेढ़ साल पहले लेकर आए थे.
सेलेराम रोज सुबह सुंदरी के साथ निकल जाते हैं और गली-मुहल्लों में सुंदरी का नाच और खेल दिखाते हैं. इससे उनकी दाल रोटी भर के पैसों का इंतजाम हो जाता है और अपनी पत्नि के साथ इस उम्र में भी वह एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.