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33 साल के करियर में सिर्फ एकबार चुनाव लड़े थे मनमोहन सिंह, कारसेवक से हारने पर डॉक्टर साहब ने लौटाए 7 लाख

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने 33 साल के राजनीतिक करियर में सिर्फ एक बार आम चुनाव लड़ा। 1999 में उन्होंने दक्षिणी दिल्ली से चुनाव लड़ा और करीब 30 हजार वोटों से हार गए। चुनाव में मनमोहन सिंह को कांग्रेस नेताओं का समर्थन नहीं मिला और यही उनकी हार का मुख्य कारण रहा।

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manmohan singh first election
  • December 27, 2024 12:32 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 day ago

नई दिल्लीः मनमोहन सिंह 2009 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे। 33 साल तक सेवा देने के बाद वे इस साल की शुरुआत में राज्यसभा से सेवानिवृत्त हुए। मनमोहन सिंह ने 1991 में सियासत में कदम रखा और वित्त मंत्री बने। राज्यसभा के जरिए वो संसद पहुंचे। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने अपने 33 साल के करियर में सिर्फ एक बार ही चुनाव लड़ा था, जिसमें भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

इसी सीट से लड़े थे मनमोहन सिंह 

सोनिया गांधी ने 1999 में सत्ता में वापसी के लिए अपने सभी शीर्ष नेताओं को मैदान में उतारने का फैसला किया था। सोनिया के कहने पर मनमोहन सिंह भी चुनाव लड़ने के लिए राजी हो गए थे। मुस्लिम और सिख समुदाय के वोटों के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट से टिकट दिया था।

मनमोहन सिंह को लगा कि चूंकि पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है, इसलिए पार्टी के सभी नेता और कार्यकर्ता स्वाभाविक रूप से उनके साथ होंगे और सिख मुस्लिम वोटों से वह जीत जाएंगे। भाजपा ने कारसेवक की छवि वाले विजय कुमार मल्होत्रा ​​को मनमोहन सिंह के खिलाफ उतारा। मनमोहन सिंह की तरह मल्होत्रा ​​की भी कोई राष्ट्रीय पहचान नहीं थी, लेकिन वह दिल्ली की राजनीति में पंजाबी चेहरा थे। वह जनसंघ के दौर से ही पार्टी से जुड़े हुए थे।

वापस किए 7 लाख रुपये

भाजपा ने दक्षिण दिल्ली के चुनाव को डॉक्टर बनाम कारसेवक की लड़ाई में बदल दिया था। स्थानीय कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह को बाहरी उम्मीदवार मानते हुए उनके समर्थन में मजबूती से खड़े नहीं हुए, जिसके कारण मनमोहन सिंह 30 हजार वोटों से हार गए। दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट पर भाजपा के विजय मल्होत्रा ​​को 261230 वोट मिले थे और कांग्रेस के मनमोहन सिंह को 231231 वोट मिले थे। मनमोहन सिंह को चुनाव में खर्च करने के लिए पार्टी फंड से पैसे मिले थे। हार के बाद उन्होंने पार्टी फंड से बचे हुए 7 लाख रुपए लौटा दिए थे। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में दोबारा कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा और राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री बने।

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