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बिहार के नए राज्यपाल मो. आरिफ के साथ तालमेल बिठा पाएंगे CM नीतीश कुमार ?

नए राजपाल मोहम्मद आरिफ खान के बिहार आने से अब राजनीती का बाजार भी से गर्म हो गया है। मोहम्मद आरिफ खान ऐसे समय में बिहार आए हैं, जब ऐसी चर्चा हो रही है की CM नितीश कुमार बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। मोहम्मद आरिफ खान का अबतक का रिकॉर्ड रहा है की, कि उनकी राज्य सरकार से बनती नहीं है.

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Mohammad Arif Khan and Nitish Kumar,
  • December 25, 2024 5:37 pm Asia/KolkataIST, Updated 23 hours ago

पटना : बिहार में राज्यपाल की बदली हो गई है। बिहार में अब केरल के राज्यपाल रहे मो. आरिफ जो बिहार का नया राज्यपाल बनाया गया है।  बिहार के राजयपाल रहे विश्वनाथ आर्लेकर को केरल का रज्यपाल बनाया गया है।

राजनितिक गरमाई

नए राजपाल मोहम्मद आरिफ खान के बिहार आने से अब राजनीती का बाजार भी से गर्म हो गया है। मोहम्मद आरिफ खान ऐसे समय में बिहार आए हैं, जब ऐसी चर्चा हो रही है की CM नितीश कुमार बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। मोहम्मद आरिफ खान का अबतक का रिकॉर्ड रहा है की, कि उनकी राज्य सरकार से बनती नहीं है. राज्य सरकार से हमेशा विवाद होता रहता है। केरल में भी मोहम्मद आरिफ और राज्य सरकार के बीच खूब तनातनी हुई थी और कई मम्मलों में विवाद भी हुए थे। उन पर संघ को समर्थन करने का आरोप लग गया था। अब सवाल यह उठ रहा है कि नितीश कुमार के साथ मोहम्मद आरिफ की सहमति बन पाएंगी ?

JDU ने साफ कही बातें

JDU ने साफ कह दिया है कि केरल जैसी स्थिति बिहार में नहीं होने वाली है. जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता और एमएलसी नीरज कुमार ने कहा कि महामहिम का बदलाव केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है और संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यशैली रही है. केंद्र में सत्ता पक्ष की सरकार रही हो या विपक्ष की, 19 साल का ट्रैक रिकॉर्ड यह है कि संवैधानिक पद से टकराव की राजनीति की संस्कृति नीतीश कुमार में कभी नहीं रही. सम्मान का उनका रिकॉर्ड है और यह उनके अधिकार क्षेत्र का मामला है. कौन महामहिम आते हैं और नहीं आते हैं यह उनका मामला है.

संघ की तारीफ की

मोहम्मद आरिफ खान के बारे में कहा जाता है कि 2019 में जब से उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया है, तब से राज्य सरकार और गवर्नर के बीच विवाद चल रहा है. चाहे वो कुलपति की नियुक्ति का मामला हो या फिर हाथापाई का मामला. आरिफ मोहम्मद खान केरल में सत्तारूढ़ सीपीएम के नेतृत्व वाले गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के लिए इस कदर कांटा बन गए थे कि CPM ने तमिलनाडु में डीएमके सरकार के साथ मिलकर रणनीति बनानी शुरू कर दी थी.

उस समय सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने उन पर संघ की तरफ से बोलने का आरोप भी लगाया था. सीएए से लेकर कृषि कानून तक, जब भी राज्यपाल ने केंद्र का पक्ष लिया, तो माकपा ने इसे संघ परिवार और वाम मोर्चे का संघर्ष बताया था. अब यह देखना होगा है कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ उनकी कैसे बनती है।

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