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5वीं-8वीं क्लास के बच्चों का सिरदर्द बढ़ा, नो डिटेंशन पॉलिसी की गई खत्म, जानें किन स्कूलों पर पड़ेगा असर

इन 16 राज्यों में नो डिटेंशन पॉलिसी पहले ही खत्म हो चुकी है. जिसमें बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, गुजरात, मध्य प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, असम, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव शामिल हैं.

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  • December 24, 2024 1:16 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 day ago

नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय की ओर से नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया गया है. जिसके तहत 5वीं और 8वीं कक्षा में फेल होने के बाद भी पास होने वाले छात्रों को अब इसका लाभ नहीं मिलेगा. आपको बता दें कि शिक्षा मंत्रालय ने कुछ ही घंटों में नो डिटेंशन पॉलिसी नोटिफिकेशन पर विस्तृत जानकारी दी. यह स्पष्ट किया गया है कि इस संशोधन के तहत अब 5वीं और 8वीं कक्षा की परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों को पास नहीं किया जाएगा.

इन स्कूलों पर भी लागू

हालांकि, अभी तक केंद्र शासित स्कूलों में ऐसा किया जाएगा. यह संशोधन केंद्रीय विद्यालय, नवोदय स्कूल, सैनिक स्कूल, पैरामिलिट्री स्कूल यानी केंद्र सरकार के अधीन स्थापित स्कूलों पर लागू होगा. ऐसा सरकारी स्कूलों के नतीजों को और बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है. पहले इस नियम के तहत फेल होने वाले छात्रों को दूसरी कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता था. नो डिटेंशन पॉलिसी को लेकर शिक्षाविदों से राय मांगी गई थी, जिसके मुताबिक इस पॉलिसी के कारण छात्र शिक्षा को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.

इन राज्यों ने लिया फैसला

इन 16 राज्यों में नो डिटेंशन पॉलिसी पहले ही खत्म हो चुकी है. जिसमें बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, गुजरात, मध्य प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, असम, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव शामिल हैं. शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, हरियाणा और पुडुचेरी ने अभी अंतिम फैसला नहीं लिया है.

नो डिटेंशन पॉलिसी क्या है?

भारत सरकार द्वारा 2009 में नो डिटेंशन पॉलिसी लागू की गई थी. इसके तहत 5वीं और 8वीं कक्षा के बच्चों को बिना फेल किए अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता था. भले ही उनका प्रदर्शन ख़राब हो. इसका उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई के दबाव से बचाना और उनका आत्मविश्वास बनाए रखना था. इस नीति का मुख्य उद्देश्य बच्चों को मानसिक दबाव से मुक्त कराना था. रिपोर्ट्स की मानें तो इसका मकसद छात्रों के मन से पढ़ाई का डर दूर करना था।

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