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संत समाज ने मोहन भागवत से कहा आप अनुशासक नहीं, हम हैं और मंदिर लेकर रहेंगे

जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि मैं मोहन भागवत के बयान से पूरी तरह असहमत हूं। वहीं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी आरएसएस प्रमुख के बयान की आलोचना की है।

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Mohan Bhagwat mandir masjid remark
  • December 23, 2024 1:51 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 hours ago

नई दिल्लीः नए मंदिर-मस्जिद विवाद पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए बयान पर अब देश के प्रसिद्ध संत रामभद्राचार्य की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने कहा है कि मोहन भागवत हमारे अनुशासक नहीं हैं, हम उनके अनुशासक हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने संभल विवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि संभल में जो कुछ हो रहा है वह बुरा है, लेकिन अच्छी बात यह है कि वहां मंदिर के प्रमाण मिले हैं। उन्होंने कहा कि हम इसे लेकर रहेंगे,

मोहन भागवत ने क्या कहा?

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे नए मंदिर-मस्जिद विवाद का विरोध किया था। पुणे में हिंदू सेवा महोत्सव कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हर दिन नए मुद्दे उठाए जा रहे हैं और यह स्वीकार्य नहीं है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग नई जगहों पर इसी तरह के विवाद उठाकर हिंदू समुदाय का नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। मोहन भागवत ने कहा कि इस तरह के विवादों को रोकने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह रणनीति देश की एकता और अखंडता के खिलाफ है।

हम मंदिर लेकर रहेंगे

मोहन भागवत के बयान पर अब रामभद्राचार्य महाराज ने कहा है कि मैं उनके बयान से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने असहमति जताते हुए कहा कि मंदिर मुद्दे पर संघर्ष जारी रहेगा। स्वामी रामभद्राचार्य ने संभल विवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि संभल में जो कुछ हो रहा है वह बुरा है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में एक अच्छा पक्ष यह है कि वहां मंदिर के प्रमाण मिले हैं। उन्होंने कहा कि हम इसे लेकर रहेंगे, चाहे वोट के सहारे, कोर्ट के सहारे या जनता के सहारे। रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि मोहन भागवत हमारे अनुशासक नहीं, हम उनके अनुशासक हैं।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी जताई नाराजगी

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मोहन भागवत के बयान पर नाराजगी जताई है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जब उन्हें सत्ता मिलनी थी तो वे मंदिर-मंदिर जाते थे। अब जब सत्ता मिल गई है तो वे मंदिरों की तलाश न करने की सलाह दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अतीत में हिंदू समाज के साथ बहुत अत्याचार हुए हैं और हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को नष्ट किया गया है। अगर अब हिंदू समाज अपने मंदिरों का जीर्णोद्धार कर उन्हें फिर से संरक्षित करना चाहता है तो इसमें गलत क्या है?

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