धार्मिक मान्यताओं और पुराणों में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का संबंध बहुत गहरा है। हिंदू धर्म में, देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि और सुख-शांति की देवी माना जाता है। वहीं, भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता और धर्म के रक्षक हैं।
नई दिल्ली: धार्मिक मान्यताओं और पुराणों में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का संबंध बहुत गहरा है। हिंदू धर्म में, देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि और सुख-शांति की देवी माना जाता है। वहीं, भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता और धर्म के रक्षक हैं। इन दोनों के मिलन को ही संसार में संतुलन का प्रतीक माना गया है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि देवी लक्ष्मी हमेशा भगवान विष्णु के चरणों में ही क्यों विराजमान रहती हैं? इसके पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई दिलचस्प बातें जुड़ी हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि- देवर्षि नारद एक बार मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु के दर्शन के लिए बैकुंठ धाम गए थे। भगवान विष्णु निद्रा में थे तो नारद जी ने प्रतीक्षा करना ही उचित समझा। तभी नारद जी ने देखा कि मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के चरणों के पास बैठी हैं। ये देख नारद जी के मन में ये सवाल आया कि आखिर माता हमेशा श्री हरि के चरणों की ओ ही क्यों बैठती हैं। अपने इस प्रश्न से बैचेन नारद जी खुद को रोक न सके और मां लक्ष्मी से उन्होंने पूछ ही लिया।
इसके बाद नारद जी के सवालों का माता लक्ष्मी ने उत्तर देते हुए कहा कि-स्त्री के हाथ में देव गुरु बृहस्पति का वास होता है और पुरुषों के पैर में दैत्य गुरु शुक्रचार्य का। ऐसे में जब मां लक्ष्मी श्री हरि के चरणों के निकट बैठती हैं, तो इससे शुभता का संचार होता है और धन का आगमन भी। यही वजह है कि मां लक्ष्मी न सिर्फ श्री हरि विष्णु के चरणों के पास विराजती हैं, बल्कि भगवान विष्णु के चरण भी दबाती हैं और जब एक स्त्री पुरुष के चरण स्पर्श करती है तो देव व दानव का मिलन होता है और इससे धनलाभ होता है।
श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की शक्ति और उनकी अनन्य भक्ति का प्रतीक हैं। यह कहा गया है कि देवी लक्ष्मी, विष्णु के चरणों में बैठकर उनकी सेवा करती हैं क्योंकि वे यह मानती हैं कि भगवान विष्णु के साथ रहकर ही वे अपने अस्तित्व को सार्थक बना सकती हैं।
लक्ष्मी का विष्णु के चरणों में विराजमान रहना प्रेम, समर्पण और विनम्रता का प्रतीक है। यह संदेश देता है कि समृद्धि और शक्ति को हमेशा धर्म और न्याय के साथ रहना चाहिए। विष्णु की चरण सेवा यह दर्शाती है कि धन और ऐश्वर्य को अहंकार से दूर रहकर धर्म और सदाचार के लिए उपयोग करना चाहिए।
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