अमेरिकी अदालत ने व्हाइट हाउस से मांगे पीएम मोदी के वीजा रिकॉर्ड

अमेरिका की एक संघीय अदालत ने व्हाइट हाउस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वीजा रिकॉर्ड मांगे हैं. अदालत ने दस्तावेज फरवरी 2016 तक पेश करने के आदेश दिए हैं.

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अमेरिकी अदालत ने  व्हाइट हाउस से मांगे पीएम मोदी के वीजा रिकॉर्ड

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  • December 13, 2015 3:31 am Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago

वाशिंगटन. अमेरिका की एक संघीय अदालत ने व्हाइट हाउस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वीजा रिकॉर्ड मांगे हैं. अदालत ने दस्तावेज फरवरी 2016 तक पेश करने के आदेश दिए हैं.

न्यूयॉर्क की इस अदालत ने नौ दिसंबर के अपने आदेश में कहा है कि विदेश विभाग मध्य जनवरी 2016 में प्रारंभिक दस्तावेज पेश करेगा और उसके बाद मध्य फरवरी में दस्तावेज की दूसरी खेप पेश करेगा. न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि मामले की अगली सुनवाई 29 फरवरी को होगी.

सिख्स फॉर जस्टिस ने दर्ज कराई शिकायत

अमेरिका के एक संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ ने ‘फ्रीडम ऑफ इंफॉर्मेशन एक्ट’  के तहत विदेश विभाग से जून 2013 से लेकर नरेंद्र मोदी के वीजा और प्रवेश से संबंधित सभी रिकॉर्डस मांगे थे, लेकिन विदेश विभाग ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. इसके खिलाफ इस संस्था ने सितम्बर में शिकायत दर्ज कराई थी.

एसएफजी की शिकायत में अमेरिकी अदालत से हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है और आरोप लगाया है कि साल 2005 में या इसके आसपास प्रतिवादी अमेरिकी विदेश विभाग ने नरेंद्र मोदी को दिया गया बी-2 पर्यटक वीजा आईएनए की धारा 212 (ए)(2)(जी) के तहत रद्द कर दिया था, क्योंकि एक विदेशी सरकारी अधिकारी के पद पर काम करते हुए मोदी धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार थे, जिसके कारण उनका अमेरिका में प्रवेश अस्वीकार्य था.

क्या है मामला ?

बता दें कि मोदी को पहले जारी किया गया पर्यटक वीजा, 2002 के गुजरात दंगे में उनकी कथित भूमिका को लेकर 2005 में रद्द कर दिया गया था. उस समय वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

ओबामा ने दिया निमंत्रण

साल 2014 में मोदी पीएम बने और उसके बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें अमेरिका आने का निमंत्रण दिया था. मोदी उसके बाद से दो बार अमेरिका जा चुके हैं.

मोदी ही एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी कानून के तहत अमेरिकी वीजा से इंकार कर दिया गया था.

बता दें कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पर लगा यह प्रतिबंध हटा दिया गया था,  क्योंकि शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष इस कानून के दायरे में नहीं आते.

 

 

 

 

 

 

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