नई दिल्ली: विश्व प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 17 नवंबर, रविवार को रात 9:07 बजे शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत 13 नवंबर से पंच पूजाएं शुरू हो जाएंगी। इस दौरान श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय विशेष रूप से मौजूद रहेंगे। बीकेटीसी […]
नई दिल्ली: विश्व प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 17 नवंबर, रविवार को रात 9:07 बजे शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत 13 नवंबर से पंच पूजाएं शुरू हो जाएंगी। इस दौरान श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय विशेष रूप से मौजूद रहेंगे।
बीकेटीसी के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ के अनुसार, पंच पूजाओं का शुभारंभ 13 नवंबर को भगवान गणेश की पूजा से होगा, जिसके बाद भगवान गणेश के कपाट बंद किए जाएंगे। इसके अगले दिन 14 नवंबर को, आदि केदारेश्वर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे।
डॉ. गौड़ ने बताया कि 15 नवंबर, शुक्रवार को खडग-पुस्तक पूजन और वेद ऋचाओं का वाचन बंद किया जाएगा। इसके बाद 16 नवंबर को माता लक्ष्मी जी को कढ़ाई भोग अर्पित किया जाएगा। मुख्य कार्यक्रम 17 नवंबर को रात 9:07 बजे होगा, जब श्री बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद 18 नवंबर को श्री कुबेर जी, श्री उद्धव जी और रावल जी की गद्दी का शीतकालीन प्रवास श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ और श्री पांडुकेश्वर में किया जाएगा। शीतकाल में भगवान कुबेर और श्री उद्धव जी का प्रवास पांडुकेश्वर में रहेगा।
18 नवंबर को आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी पांडुकेश्वर प्रवास के बाद 19 नवंबर को जोशीमठ स्थित श्री नृसिंह मंदिर पहुंचेगी, जहां विशेष रूप से शीतकालीन पूजाएं आयोजित की जाएंगी। बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि पंच पूजाओं के अनुष्ठान को रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल और वेदपाठी रविंद्र भट्ट द्वारा संपन्न किया जाएगा।
ध्यान रहे कि उत्तराखंड के चार धामों में से श्री केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट पहले ही नवंबर के पहले सप्ताह में बंद हो चुके हैं। इसके साथ ही श्री तुंगनाथ धाम के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं, जबकि श्री मद्महेश्वर मंदिर के कपाट 20 नवंबर को बंद होंगे। शीतकाल के दौरान, भगवान बदरीनाथ और अन्य देवताओं की पूजा जोशीमठ के श्री नृसिंह मंदिर और श्री पांडुकेश्वर में नियमित रूप से की जाएगी।
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