नई दिल्ली: दिन का महत्व छठ पूजा में अत्यधिक है, क्योंकि इसे व्रतियों के लिए आत्मशुद्धि का दिन माना जाता है। खरना के दिन पूरे दिन व्रत रखने के बाद व्रती शाम को संध्या समय विशेष प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना का पालन करते समय कुछ महत्वपूर्ण नियमों का ध्यान रखना आवश्यक होता है, ताकि […]
नई दिल्ली: दिन का महत्व छठ पूजा में अत्यधिक है, क्योंकि इसे व्रतियों के लिए आत्मशुद्धि का दिन माना जाता है। खरना के दिन पूरे दिन व्रत रखने के बाद व्रती शाम को संध्या समय विशेष प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना का पालन करते समय कुछ महत्वपूर्ण नियमों का ध्यान रखना आवश्यक होता है, ताकि पूजा सही ढंग से संपन्न हो सके। आइए जानें खरना के नियम और इसकी महत्ता।
– खरना के दिन व्रती सुबह से लेकर शाम तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखते हैं। इसे कठोर तप माना जाता है, जो व्रतियों को आंतरिक शुद्धि प्रदान करता है। उपवास का पालन करके व्रती अपने शरीर और मन को भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा के लिए तैयार करते हैं।
– खरना के प्रसाद की तैयारी में पूर्ण स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। प्रसाद में मुख्यतः गन्ने का रस, गुड़, चावल और दूध का प्रयोग किया जाता है। इसे मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है ताकि प्रसाद पवित्र और प्राकृतिक रहे।
– खरना के प्रसाद में गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी का मुख्य स्थान होता है। यह प्रसाद व्रती द्वारा पहले छठी माता को अर्पित किया जाता है, फिर इसे पूरे परिवार के साथ साझा किया जाता है। इसे ग्रहण करने से पहले व्रती गंगाजल से स्नान करते हैं और फिर श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण करते हैं।
– खरना के दिन व्रती को मानसिक और शारीरिक पवित्रता का ध्यान रखना होता है। कोई भी नकारात्मक विचार या अपवित्र आचरण इस दिन वर्जित माना जाता है। संयम और शुद्धता के साथ इस दिन का पालन करना आवश्यक है, क्योंकि यह पूजा के तीसरे दिन, संध्या अर्घ्य के लिए व्रतियों को तैयार करता है।
– खरना के प्रसाद का सामूहिक भोजन परिवार में प्रेम और एकता को बढ़ाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती अगले दिन के निर्जला व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होते हैं।
खरना छठ पूजा का एक प्रमुख अंग है जो व्रती के तप और भक्ति को बढ़ाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा और नियमों का पालन करने से भगवान सूर्य और छठी माता व्रती पर अपनी कृपा बरसाते हैं। खरना का प्रसाद केवल एक भोजन नहीं, बल्कि व्रती की तपस्या और साधना का प्रतीक है, जो उनकी आस्था और श्रद्धा को और भी मजबूत करता है।
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