नई दिल्ली। ईरान के आजाद विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली एक लड़की पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल लड़की हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी तभी उसे गिरफ्तार कर लिया गया। ईरान एक मुस्लिम कट्टरपंथी देश है और यहां पर शरिया कानून को माना जाता है। यह उन देशों की लिस्ट […]
नई दिल्ली। ईरान के आजाद विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली एक लड़की पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल लड़की हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी तभी उसे गिरफ्तार कर लिया गया। ईरान एक मुस्लिम कट्टरपंथी देश है और यहां पर शरिया कानून को माना जाता है। यह उन देशों की लिस्ट में शुमार है, जहाँ महिलाओं के पहनावे को लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं। इसका अंदाजा हम इसी से लगा सकते हैं कि अगर कोई ईरानी महिला सिर ढके बिना चलती है तो उसे कोड़े मारे जाते हैं। इन सबके बीच ईरानी महिलाओं ने क्रांति की चिंगारी जला दी है।
आज जिस महिला का नाम पूरी दुनिया में छाया हुआ है, वो है अहौ दारयाई। कट्टरपंथियों के खिलाफ अहौ दारियाई हिजाब विरोधी आंदोलन को आगे बढ़ाया है। उनसे पहले महसा अमीनी, मसीह अलीनेजाद, निका शाकर्रामी और हदीस ने कट्टरपंथियों के सामने अपनी आवाज उठाई थी। ईरान में महिलाओं ने हिजाब क्रांति को जन्म दिया है। आइये जानते हैं कि हिजाब क्रांति एक कट्टर इस्लामिक देश में कैसे शुरू हुई?
ईरान में हिजाब को लेकर महिलाएं पिछले एक दशक से प्रदर्शन कर रही है। साल 2022 में साकेज की रहने वाली महसा अमीनी अपने छोटे भाई से मिलने तेहरान गई हुई थी। जहां पर पुलिस ने उसे देख लिया। इसके बाद मॉरल पुलिस ने महसा अमीनी को अपनी कस्टडी में ले लिया। महसा के भाई का कहना था कि उनकी बहन ने सही से हिजाब नहीं पहना था और उसके सिर इ कुछ बाल दिख रहे थे। गिरफ्तार होने दो घंटे बाद ही महसा को हार्ट अटैक आया और वो कोमा में चली गई। इलाज के तीन दिन बाद ही उसकी जान चली गई। इस घटना से ईरान की महिला सड़क पर उतर आईं और विरोध प्रदर्शन किया। महिलाओं ने अपने हिजाब उतार दिया। बाल काटकर फेंक दिए। कट्टरपंथियों के सामने वो डट कर खड़ी रहीं।
45 साल पहले ईरान में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव ज्यादा था। महिलाओं के पहनावे को लेकर रोकटोक नहीं थी। 1979 में इस्लामिक क्रांति के दौरान धार्मिक नेता अयातुल्लाह खामनेई ने जैसे ही अपने हाथ में सत्ता की बागडोर ली तो उन्होंने पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया। इसके बाद हिजाब को लेकर छिटपुट आवाज उठाई जाने लगी। 2014 में पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने बिना हिजाब पहले एक तस्वीर पोस्ट की। इसके बाद कई महिलाओं ने बिना हिजाब के उन्हें फोटो भेजना शुरू किया और इस तरह से एक आंदोलन का जन्म हुआ।
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