नई दिल्ली: छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू पर्व है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, जिसमें भक्त सूर्य देव की उपासना करते हुए पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते हैं। इस […]
नई दिल्ली: छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू पर्व है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, जिसमें भक्त सूर्य देव की उपासना करते हुए पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते हैं। इस अनुष्ठान में सूप का विशेष महत्व है, जिसका उपयोग पूजा के दौरान अर्घ्य देने में किया जाता है। आइए जानते हैं, आखिर छठ पूजा में सूप का उपयोग क्यों होता है और इसकी परंपरा कैसे शुरू हुई।
छठ पूजा में सूप का उपयोग विशेष रूप से इसलिए किया जाता है क्योंकि यह भारतीय संस्कृति में एक पवित्र और शुभ प्रतीक माना जाता है। सूप में प्रसाद और अन्य पूजा सामग्री रखकर सूर्य देव को अर्पण किया जाता है। सूप के जरिए भगवान को अर्पण किया गया हर अन्न, फल और मिठाई भक्त के समर्पण और आस्था का प्रतीक होता है।
सूप आमतौर पर बांस से बना होता है, जो प्राकृतिक सामग्री है। बांस को पर्यावरण के अनुकूल और पवित्र माना जाता है, जिससे सूप की उपयोगिता धार्मिक दृष्टिकोण से और भी अधिक बढ़ जाती है। सूप के जरिए पूजा का समर्पण दिखाया जाता है और इसे सूर्य देव को अर्पण करने से आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। छठ पूजा में विशेष रूप से डोम जाति के द्वारा बनाए गए बांस के सूप का उपयोग किया जाता है। इन सूपों को बनाने में विशेष प्रकार की बांस की लकड़ी का उपयोग किया जाता है।
छठ पूजा की परंपरा का उल्लेख प्राचीन वेदों और पुराणों में मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत त्रेतायुग में हुई थी, जब माता सीता ने भगवान राम के साथ अयोध्या लौटने के बाद सूर्य देव की उपासना की थी। एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए छठ व्रत किया था। तभी से यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है और सूप का उपयोग इस पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया।
सूप का उपयोग केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि इसमें छठ पर्व की गहराई छिपी हुई है। इस पर्व के दौरान महिलाएं और पुरुष दोनों ही व्रत रखते हैं और नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूप में रखा प्रसाद, जिसे सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, भक्त की श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है। इस प्रक्रिया में सूप एक माध्यम के रूप में कार्य करता है, जो कि सूर्य देव और भक्त के बीच की दूरी को पाटता है।
सूप के उपयोग में वैज्ञानिक पहलू भी है। बांस से बना सूप हल्का होता है और आसानी से जल में तैर सकता है। इससे सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान भक्त को आसानी होती है। इसके अलावा, बांस को पवित्र और शुद्ध माना जाता है, जो प्रकृति के संरक्षण का संदेश भी देता है।
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