इस शहर में भिखारियों की हो रही मौज, कमा रहे 1 लाख रुपए महीना

लखनऊ: लखनऊ में भिखारियों का एक चौंकाने वाला पहलू सामने आया है, जहां कई भिखारियों की महीने के कमाई नौकरीपेशा लोगों से भी अधिक पाई गई है। बता दें समाज कल्याण विभाग और जिला नगरीय विकास अभिकरण द्वारा किए गए एक सर्वे में खुलासा हुआ है कि लखनऊ के 5312 भिखारियों की महीने की कमाई […]

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इस शहर में भिखारियों की हो रही मौज, कमा रहे 1 लाख रुपए महीना

Yashika Jandwani

  • October 25, 2024 6:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 weeks ago

लखनऊ: लखनऊ में भिखारियों का एक चौंकाने वाला पहलू सामने आया है, जहां कई भिखारियों की महीने के कमाई नौकरीपेशा लोगों से भी अधिक पाई गई है। बता दें समाज कल्याण विभाग और जिला नगरीय विकास अभिकरण द्वारा किए गए एक सर्वे में खुलासा हुआ है कि लखनऊ के 5312 भिखारियों की महीने की कमाई लगभग 90 हजार से 1 लाख रुपये तक पहुंच जाती है, जिससे उनकी सालाना आमदनी लगभग 12 लाख रुपये हो जाती है। सर्वे में यह भी पाया गया कि इनमें से कई भिखारियों के पास स्मार्टफोन और पैनकार्ड जैसी सुविधाएं भी हैं।

प्रतिदिन काम रहे 2000 रुपये

इस सर्वे के अनुसार, राजधानी लखनऊ में भिखारियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। वहीं इसमें ज्यादातर गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चों के साथ भीख मांगने वाली महिलाओं की रोजाना की कमाई तीन हजार रुपये तक है, जबकि वृद्ध और बच्चे भी प्रति दिन कमाई लगभग 900 से 2000 रुपये तक कमा रहे हैं। वहीं परियोजना अधिकारी सौरभ त्रिपाठी के अनुसार, 90% भिखारी प्रोफेशनल्स हैं और इनमें से अधिकतर आसपास के जिलों जैसे हरदोई, बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव और रायबरेली से आए हैं। बता दें इन भिखारियों में बाराबंकी के लखपेड़ाबाग के निवासी अमन के पास स्मार्टफोन और पैनकार्ड भी मौजूद हैं।

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सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ के नागरिक रोजाना लगभग 63 लाख रुपये भीख के रूप में देते हैं। इस आंकड़े ने जिला नगरीय विकास अभिकरण को हैरान कर दिया है।

गरीबों के अधिकारों का उल्लंघन

इस बीच भिखारियों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन कानूनों को बनाने से पहले सरकारों ने विस्तार से विचार किया होगा। इसके तहत कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले के लिए हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी। याचिकाकर्ता ने संविधान की धारा 14 और 21 का हवाला देते हुए इस तरह के कानून को गरीबों के अधिकारों का उल्लंघन बताया था, हालांकि उन्होंने याचिका वापस लेने की अपील की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

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