नई दिल्ली : कहते है कि भगवान हर जगह नहीं पहुंच सकता इसके लिए उसने माँ को बनाया। पूरे संसार का प्रेम एक तरफ और मां का प्यार एक तरफ होता है, जिसकी बराबरी नहीं की जा सकती। मां अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हैं लेकिन ऐसा क्या हुआ की एक मां ने अपनी […]
नई दिल्ली : कहते है कि भगवान हर जगह नहीं पहुंच सकता इसके लिए उसने माँ को बनाया। पूरे संसार का प्रेम एक तरफ और मां का प्यार एक तरफ होता है, जिसकी बराबरी नहीं की जा सकती। मां अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हैं लेकिन ऐसा क्या हुआ की एक मां ने अपनी ही जवान बेटी को जिंदा दफना दिया। आइए जानते है इसके पीछे की पूरी कहानी।
भगवान शिव की नगरी वाराणसी की महिमा अपरंपार है। कहा जाता है कि यहां जितनी गलियां हैं, उससे कहीं ज्यादा मंदिर हैं और इन मंदिरों से भी ज्यादा इन मंदिरों के बारे में कहानियां और किस्से प्रचलित हैं। वाराणसी के जिस मंदिर में जिंदा दफनाई गई लड़की की हम यहां बात कर रहे हैं, वह कोई आम लड़की नहीं बल्कि एक राजकुमारी थीं।
कहा जाता है कि एक राजकुमारी को उसकी सगी मां ने मंदिर की नींव में जिंदा दफना दिया था और उसी की कब्र पर मंदिर बनवाया गया था। यह मंदिर वाराणसी के देवनाथ पुरा मोहल्ले के पांडेय घाट पर स्थित है। बाहर से देखने पर यह किसी पुरानी हवेली जैसा लगता है, लेकिन अंदर से यह किसी बड़ी हवेली जैसा भव्य मंदिर है।
वाराणसी के पांडेय घाट स्थित तारा माता मंदिर की नींव में जिंदा दफना दी गई राजकुमारी नटौर की रानी भवानी की बेटी थी। उसका नाम तारा सुंदरी था, जो अपनी मां की इकलौती संतान थी। कहा जाता है कि तारा सुंदरी बेहद खूबसूरत थी। उसका विवाह बंगाल के खेजुरी गांव में रहने वाले रघुनाथ लाहिड़ी से हुआ था लेकिन वह बहुत कम उम्र में ही विधवा हो गई थी। इसके बाद वह अपनी मां के साथ नटौर में रहने लगी।
रानी भवानी का विवाह नटौर के राजा रमाकांत से हुआ था। कहा जाता है कि नटौर कभी एक समृद्ध राज्य था। जब मराठों ने राज्य पर हमला किया तो उसमें महाराज रमाकांत मारे गए। उनकी रानी ने राज्य पर अधिकार कर लिया। इधर बेटी तारा सुंदरी भी शादी के कुछ समय बाद ही विधवा हो गई और अपने मायके आ गई। तब से दोनों नटौर में रहने लगे। आपको बता दें, नटौर अब बांग्लादेश में स्थित है, उस समय यह अविभाजित बंगाल का हिस्सा था।
नटोर की राजकुमारी तारा सुंदरी की बेमिसाल खूबसूरती के बारे में सुनकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने उससे शादी करने का ऐलान कर दिया। नवाब से बचने के लिए रानी भवानी अपनी बेटी तारा सुंदरी के साथ गंगा के रास्ते बनारस (वाराणसी) भाग गईं, लेकिन मुसीबत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सिराजुद्दौला बारात और अपनी सेना के साथ काशी की ओर निकल पड़े।
सिराज-उद-दौला के वाराणसी आने की बात जानकर तारा सुंदरी ने अपनी मां रानी भवानी से कहा कि उसे जिंदा दफना दिया जाए लेकिन किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति उसके शरीर को न छुए। कहा जाता है कि कोई और उपाय न देखकर नटौर की रानी भवानी ने अपनी बेटी तारा सुंदरी को जिंदा ही जमीन में दफना दिया और उसकी कब्र पर तारा माता का मंदिर बनवाकर उसमें मां तारा की मूर्ति स्थापित कर दी। कहा जाता है कि रानी भवानी ने यह काम एक रात में ही करवा दिया था।
कहा जाता है कि अपनी जीवित बेटी की कब्र बनवाने के बाद रानी भवानी लंबे समय तक बनारस में ही रहीं। काशी की पंचक्रोशी यात्रा के रास्ते में जितनी भी धर्मशालाएं, कुएं और तालाब हैं, उनका निर्माण रानी भवानी ने ही करवाया था। इतिहास कहता है कि वाराणसी दो रानियों का ऋणी है, एक रानी अहिल्याबाई और दूसरी रानी भवानी। ये दोनों ही विधवा थीं। काशी के सभी घाट, मंदिर, तालाब और कुंड या तो रानी अहिल्याबाई ने बनवाए थे या फिर रानी भवानी ने। कहा जाता है कि समय के साथ रानी भवानी ने अपना सब कुछ दान कर दिया था।
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