नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए हरियाणा सरकार के उस फैसले को जायज़ ठहराया है जिसके तहत अब सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही चुनाव लड़ सकेंगे. राज्य सरकार नए नियमों के मुताबिक, जनरल के लिए दसवीं पास, दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है. इसके अलावा बिजली बिल के बकाया ना होने और किसी केस में दोषी करार ना होने के साथ में घर में टायलेट होने की शर्त रखी गई है.
दरअसल पंचायत चुनाव लड़ने के लिए नियम में किए संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर को अंतरिम रोक लगा दी थी. हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उसके नए नियमों के मुताबिक 43 फीसदी लोग पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. हालांकि याचिकाकर्ता ने इस आकंड़े को गलत बताया है. वैसे सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा कि आखिर कितने सांसद अनपढ़ हैं. अटॉर्नी जनरल ने बताया कि चार सांसद. कोर्ट ने कहा कि सहज प्रक्रिया में ही पढ़े-लिखे लोग चुनाव लड़ रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से पूछा था कि वो बताए कि नए नियमों के मुताबिक कितने लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. राज्य में कितने टॉयलेट हैं. साथ ही स्कूलों की जानकारी भी मांगी थी. मंगलवार को सुनवाई के दौरान हरियाणा की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में बताया कि नए नियमों के मुताबिक 43 फीसदी लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. साथ ही कोर्ट को बताया गया कि राज्य के 84 फीसदी घरों में टॉयलेट हैं, जबकि 20 हजार स्कूल हैं.
गलत आंकड़े पेश किए गए
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार ने गलत आंकड़े पेश किए हैं. सही में ये संख्या 43 फीसदी नहीं बल्कि 64 फीसदी है और अगर दलित महिलाओं की बात करें तो ये संख्या 83 फीसदी तक पहुंच जाती है. उन्होंने दावा किया कि सरकार ने ये आंकड़ा प्राइमरी स्कूलों के आधार पर दिया है. ये भी कहा गया कि सरकार ने घरों की संख्या 2012 के आधार पर की जबकि टॉयलेट आज के आधार पर. इसी तरह राज्य सरकार ने 20 हजार स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों को भी गिना है, जबकि हकीकत ये है कि राज्य में दसवीं के लिए सिर्फ 3200 स्कूल हैं यानी आधे गांवों में दसवीं तक के स्कूल तक नहीं हैं. ऐसे में राज्य सरकार पंचायत चुनाव के लिए दसवीं पास की योग्यता कैसे निर्धारित कर सकती है.