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फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की पार्टी ने किया कमाल, महबूबा मुफ़्ती को लगा बड़ा झटका

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने ज़बरदस्त वापसी की है,

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फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की पार्टी ने किया कमाल, महबूबा मुफ़्ती को लगा बड़ा झटका
  • October 8, 2024 5:26 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने ज़बरदस्त वापसी की है, जबकि महबूबा मुफ़्ती की पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को जनता ने नकार दिया है।

बीजेपी की सीमित सफलता

बीजेपी, जो जम्मू क्षेत्र से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी, चुनाव में अपनी सीमित पहुँच को बढ़ाने में नाकाम रही है। जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों में से अधिकतर सीटें नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस के खाते में जाती नजर आ रही हैं।

10 साल बाद हुए चुनाव

यह चुनाव 2014 के बाद हुए हैं और यह पहली बार है जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद वोटिंग हुई है। पिछली बार महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, लेकिन इस बार वह अकेले चुनावी मैदान में उतरी।

पीडीपी का नुकसान

पीडीपी को इस बार भारी नुकसान हुआ है। पिछले चुनावों में 29 सीटें जीतने वाली पीडीपी अब सिर्फ 3 सीटों तक सिमट गई है। वहीं, बीजेपी ने पिछले चुनावों में जितनी सीटें जीती थीं, कमोबेश उसी स्थिति में है.

इल्तिजा मुफ़्ती की हार

महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा मुफ़्ती भी अपनी सीट से पिछड़ रही हैं, जिससे साफ है कि कश्मीर घाटी के मतदाताओं ने एकतरफ़ा नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को समर्थन दिया है।

मतदान का उत्साह

जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में औसतन 63% से अधिक मतदान हुआ, जो दर्शाता है कि लोगों में चुनाव के प्रति उत्साह था।

सरकार बनाने की संभावनाएं

नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस के बीच गठबंधन के लिए सरकार बनाना आसान रहेगा। हालांकि, फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने कहा है कि अगर पीडीपी सरकार में शामिल होना चाहेगी, तो उनका स्वागत किया जाएगा।

महबूबा मुफ़्ती की प्रतिक्रिया

महबूबा मुफ़्ती ने हार को स्वीकार करते हुए कहा, “लोगों ने ऐसा महसूस किया कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस स्थिर सरकार देकर बीजेपी को दूर रख सकती हैं। लोकतंत्र में लोगों की मर्ज़ी का सम्मान होना चाहिए।”

विश्लेषकों का मानना है कि इन चुनावों के माध्यम से कश्मीर के लोगों ने अपनी ख़ामोशी तोड़ी है। उन्होंने अपनी आवाज़ उठाते हुए लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक़ हासिल करने की कोशिश की है।

 

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