हमारे धर्मशास्त्रों में मांसाहार को तामसिक भोजन माना गया है, जो व्यक्ति की बुद्धि और सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है।
नई दिल्ली: हमारे धर्मशास्त्रों में मांसाहार को तामसिक भोजन माना गया है, जो व्यक्ति की बुद्धि और सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है। श्रीकृष्ण ने एक शिकारी को समझाते हुए बताया कि मांस खाना कभी उचित नहीं हो सकता। आखिर क्यों? आइए, जानते हैं इस पौराणिक कथा के माध्यम से।
एक बार श्रीकृष्ण यमुना किनारे बांसुरी बजा रहे थे, तभी एक हिरण डर के मारे उनके पीछे छिप गया। उसका पीछा करता हुआ एक शिकारी भी वहां पहुंचा और हिरण को सौंपने की मांग की। श्रीकृष्ण ने शिकारी को समझाया कि किसी भी जीव को मारना पाप है और मांस खाना भी। शिकारी ने पूछा, “राजा लोग भी शिकार करते हैं, क्या वे भी पापी हैं?” इसके बाद श्रीकृष्ण ने एक और कथा सुनाई।
मगध राज्य में एक बार अकाल पड़ा और राजा ने मंत्रियों से समस्या का समाधान पूछा। एक मंत्री ने मांस को सस्ता और उत्तम भोजन बताया। प्रधानमंत्री ने एक अनोखा प्रयोग किया—वह रात को उस मंत्री के पास गया और कहा कि राजा की जान बचाने के लिए दो तोला मांस चाहिए। मंत्री ने मांस देने से मना कर दिया और एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर बचने की कोशिश की। प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रियों से यही बात कही और किसी ने मांस देने की हिम्मत नहीं दिखाई।
अगले दिन प्रधानमंत्री ने राजा के सामने एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं रखीं और बताया कि ये दो तोले मांस की कीमत है। सभी मंत्रियों ने अपनी जान बचाने के लिए ये कीमत चुकाई। तब राजा ने समझा कि मांस सस्ता नहीं, बल्कि सबसे महंगा है। इस सीख के बाद मगध में मेहनत कर फसलें उगाई गईं और संकट दूर हुआ।
इस कहानी को सुनकर शिकारी ने मांस खाना और शिकार करना छोड़ दिया। श्रीकृष्ण की शिक्षा ने उसे सच्चे धर्म का मार्ग दिखाया।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के उद्देश्य से दी जा रही है। Inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता।
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