हिन्‍दू और मुस्लिम का विवाद आज का नहीं है बल्कि आजादी के पहले के दौर में भी हालात ऐसे ही थे.

आजादी से पहले ट्रेनों में हिन्‍दू चाय-मुस्लिम चाय और हिन्‍दू पानी-मुस्लिम पानी अलग-अलग मिला करते थे.

महात्‍मा गांधी ने अपनी आत्‍मकथा ‘सत्‍य के प्रयोग’ में ऐसी एक घटना के बारे में जिक्र किया था.

वह 1915 में हरिद्वार जा रहे थे. कलकत्‍ता से आने वाली ट्रेन में लोगों के गले सूख रहे थे.

सहारनपुर में पानी वाला आया और कहा मुस्लिम पानी. वहां सिर्फ मुसलमानों ने पानी पिया, हिन्‍दू प्‍यासे रहे.

हिन्‍दू अपने धर्म को बचाने के लिए प्‍यासे ही रहे. महात्‍मा गांधी ने इस घटना को आत्‍मकथा में दर्ज किया.

उस दौर में हिन्‍दू पानी पिलाने वाले को पानी पांड़े कहा जाता है. यही उनकी पहचान थी जो कालांतर में उनकी जाति पांड़े बन गई.

उस दौर में जेल में भी बंद हिन्‍दू और मुस्लिम कैदियों के लिए चाय और पानी की व्‍यवस्‍था अलग थी.