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जितिया व्रत की विशेषताएं: जानें इसका बच्चों पर कैसे पड़ता है प्रभाव

नई दिल्ली: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत भी कहा जाता है. माताओं द्वारा अपने बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सफल जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। इस व्रत को अत्यंत कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं यानी माताओं द्वारा अन्न-जल का त्याग किया जाता हैं। पंचांग के अनुसार, […]

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जितिया व्रत की विशेषताएं: जानें इसका बच्चों पर कैसे पड़ता है प्रभाव
  • September 23, 2024 3:45 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत भी कहा जाता है. माताओं द्वारा अपने बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सफल जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। इस व्रत को अत्यंत कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं यानी माताओं द्वारा अन्न-जल का त्याग किया जाता हैं।

पंचांग के अनुसार, यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। व्रत की शुरुआत “नहाय-खाय” से होती है और इसका समापन “पारण” के साथ किया जाता है। जितिया व्रत में नहाय-खाय और पारण का विशेष महत्व होता है। वहीं ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, इस वर्ष 2024 में जितिया व्रत की शुरुआत 24 सितंबर से होगी और इसका समापन 26 सितंबर को होगा। वहीं मुहूर्त अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12:38 बजे शुरू होगा और 25 सितंबर को दोपहर 12:10 बजे समाप्त होगा। इसलिए उदयातिथि के आधार पर व्रत की शुरुआत 24 सितंबर को ही मानी जाएगी।

Jitiya Vrat importance

नहाय-खाय की तिथि

जितिया व्रत की शुरुआत से एक दिन पहले नहाय-खाय की परंपरा होती है, जो इस वर्ष 24 सितंबर 2024 यानी मंगलवार को है। इस दिन महिलाएं पवित्र स्नान करके विशेष सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों में इस दिन मछली खाने की परंपरा भी है, जिसे शुभ माना जाता है।

व्रत पारण की तिथि और समय

24 और 25 सितंबर को निर्जला व्रत रखने के बाद 26 सितंबर को पारण किया जाएगा। बता दें पारण का समय सूर्योदय के बाद से कभी भी किया जा सकता है, लेकिन इससे पहले महिलाएं व्रती स्नान कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। इसके साथ ही इसमें जीमूतवाहन देवता की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन पारण के लिए विशेष भोजन जैसे नोनी साग, तोरई की सब्जी, रागी की रोटी और अरबी बनाने की परंपरा है। जीवित्पुत्रिका व्रत धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे पूरे भारत में महिलाएं बेहद ही श्रद्धा और विश्वास के साथ रखती हैं।

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