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नवरात्रि की अनसुनी कहानी, क्यों हुआ महिषासुर और देवी मां के बीच युद्ध

नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार वर्ष में चार बार आता है. हालांकि लेकिन शारदीय नवरात्रि, जो आश्विन मास में मनाई जाती है, सबसे खास मानी जाती है। शरद ऋतु में आने के कारण इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इस पर्व के दौरान मां दुर्गा […]

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नवरात्रि की अनसुनी कहानी, क्यों हुआ महिषासुर और देवी मां के बीच युद्ध
  • September 22, 2024 12:24 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार वर्ष में चार बार आता है. हालांकि लेकिन शारदीय नवरात्रि, जो आश्विन मास में मनाई जाती है, सबसे खास मानी जाती है। शरद ऋतु में आने के कारण इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इस पर्व के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और इसे देवी की शक्तियों के जागरण का प्रतीक माना जाता है। इस बार नवरात्रि का पर्व 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार से शुरू होगा और 11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार को समाप्त होगा। इस दौरान महाअष्टमी और महानवमी की तिथियां एक ही दिन मनाई जाएंगी क्योंकि तिथि क्षय हो रही है।

नवरात्रि का धार्मिक महत्व

नवरात्रि पर्व की पौराणिक कथा महिषासुर नामक एक शक्तिशाली दैत्य से जुड़ी है। मान्यता के अनुसार, महिषासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी से अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया था। इस वरदान के बाद वह अत्यंत अहंकारी हो गया और उसने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसने देवराज इंद्र को भी पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। इससे देवताओं में हाहाकार मच गया और उन्होंने त्रिदेवों (भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश) से सहायता मांगी। त्रिदेवों ने देवताओं से देवी आदि शक्ति का आह्वान करने को कहा, क्योंकि केवल वे ही महिषासुर का अंत कर सकती थीं।

देवी दुर्गा का प्रकट होना

देवताओं के आह्वान पर देवी दुर्गा प्रकट हुईं। सभी देवताओं ने देवी को अपने-अपने दिव्यास्त्र प्रदान किए। इसके बाद देवी ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच नौ दिनों तक घमासान युद्ध चला। अंततः दसवें दिन देवी ने महिषासुर का वध कर दिया।

नवरात्रि का महत्व

महिषासुर पर दुर्गा मां की विजय को प्रतीकात्मक रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। तभी से नवरात्रि का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है, जो राक्षसों पर देवी की जीत का प्रतीक है।

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