नई दिल्ली। दुनिया में कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं लेकिन हर धर्म में महिलाओं की स्थिति दयनीय है। आज हम एक ऐसे धर्म की बात करेंगे, जिसने सबसे पहले महिलाओं को आजदी दी। धार्मिक पुस्तकों में महिलाओं के हक़ की बात कही गई लेकिन पितृसत्तात्मक समाज ने उसे लाचार बना दिया। कुरान, हदीस […]
नई दिल्ली। दुनिया में कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं लेकिन हर धर्म में महिलाओं की स्थिति दयनीय है। आज हम एक ऐसे धर्म की बात करेंगे, जिसने सबसे पहले महिलाओं को आजदी दी। धार्मिक पुस्तकों में महिलाओं के हक़ की बात कही गई लेकिन पितृसत्तात्मक समाज ने उसे लाचार बना दिया। कुरान, हदीस और पैगंबर मोहम्मद की सुन्नतों पर आधारित शरिया कानून में महिलाओं के हक़ में कई बड़े फैसले किये गए हैं।
बता दें कि इस्लाम दुनिया का पहला ऐसा धर्म है, जिसने सबसे पहले महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा दिया। इस्लाम ने सबसे पहले महिलाओं को पति से तलाक लेने की आजादी दी। निकाह के बाद महिलाओं को अपनी मर्जी से नाम चुनने का अधिकार भी मिला। ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं निकाह के बाद अपने नाम के साथ पिता का नाम जोड़ती हैं। शरीयत में महिला और पुरुष में कोई फर्क नहीं किया गया है।
इस्लामिक शरिया कानून में औरतों के काम करने पर पाबंदी नहीं है। न ही उनके पढ़ने लिखने पर पाबन्दी लगाई गई है। नबी की पहली पत्नी खदीजा एक बिजनेस वुमन बताई जाती हैं। वहीं उनकी तीसरी पत्नी आयशा उनके साथ जंग पर जाती थीं। आयशा से नबी क़ानूनी सलाह भी लिया करते थे। हालांकि पितृसत्तात्मक मुस्लिम समाज ने आज शरिया के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के हक़ को मार दिया है। उन्हें हिजाब में कैद कर दिया गया है। अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों में उनसे बोलने तक की आजादी छीन ली गई है।
पाकिस्तान में इस्लाम से उठा लोगों का भरोसा? हिंदुओं की बढ़ी आबादी, मुस्लिम हो रहे कम