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कामाख्या माता मंदिर जाने का सोच रहें तो इन बातों का ध्यान रखें

नई दिल्ली: कामाख्या माता मंदिर सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है, यहां योनि की पूजा की जाती है। यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है, न ही किसी तरह की कोई तस्वीर है। जब भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के क्रोध को शांत करने के लिए माता सती के शरीर के टुकड़े किए, […]

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कामाख्या माता मंदिर जाने का सोच रहें तो इन बातों का ध्यान रखें
  • September 3, 2024 11:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 months ago

नई दिल्ली: कामाख्या माता मंदिर सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है, यहां योनि की पूजा की जाती है। यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है, न ही किसी तरह की कोई तस्वीर है।

कामाख्या माता का मंदिर सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है, यहां योनि की पूजा की जाती है. यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है ना ही किसी प्रकार की कोई तस्वीर है.

जब भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के क्रोध को शांत करने के लिए माता सती के शरीर के टुकड़े किए, तो माता सती का गर्भ और योनि यहीं गिरे थे।

जब भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के ताडंव को शांत करने के लिए माता सती के शव के टुकड़े किए थे, उस समय माता सती की गर्भ और योनि यहां गिरी थी.

कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी जिले में स्थित है, यह मंदिर नीलाचल पहाड़ियों पर है, यहां जाने के लिए आपको विभिन्न साधनों से इन पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ता है।

कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी जिले में स्थित है, यह मंदिर नीलांचल की पहाड़ियों पर है, यहां जाने के लिए आपको इन पहाड़ियों पर विभिन्न साधनों से चढ़ाई करनी होती है.

यह मंदिर तांत्रिकों और अघोरियों का गढ़ माना जाता है, यहां तमाम तरह की तांत्रिक क्रियाएं की जाती हैं, सिद्धि के लिए अघोरी तंत्र विद्या का सहारा लेते हैं।

इस मंदिर को तांत्रिकों और अघोरियों का गढ़ माना जाता है, यहां पर तमाम तरह की तांत्रिक विधि को सिद्ध किया जाता है, यहां अघोरी सिद्धि के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेते हैं.

यह मंदिर तीन हिस्सों में बना है, जिसमें पहला हिस्सा सबसे बड़ा है, इसमें हर कोई नहीं जा सकता, जबकि दूसरे हिस्से में भक्त माता के दर्शन करते हैं।

इस मंदिर को कुल तीन हिस्सों में बनाया गया है, जिसमें पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर कौई नहीं जा सकता वहीं दूसरे हिस्से में श्रृद्धालु माता के दर्शन करते हैं.

हर साल जून के महीने में यहां अंबुबाची का मेला लगता है। यह मेला तब लगता है जब देवी रजस्वला होती हैं। इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी पूरी तरह लाल हो जाती है। यह तीन दिनों तक चलता है। इस दौरान गुवाहाटी के सभी मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं।

हर साल जून महीने में यहां अम्बुवाची का मेले का आयोजन किया जाता है यह मेला तब होता है जब माता रजस्वला होती हैं, इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी पूरी लाल हो जाती है.यह तीन दिनों तक चलता है इस दौरान पूरे गुहाटी में सभी मंदिरो के कपाट बंद रहते हैं.

चौथे दिन यहां भक्तों की लंबी कतार लगती है। हर कोई बस देवी के मासिक धर्म के खून से भीगा हुआ कपड़ा पाना चाहता है। इस कपड़े को शक्ति का रूप माना जाता है।

चौथे दिन यहां भक्तों की लम्बी कतार लगती है, हर कोई बस यही चाहता है कि माता के रज से भीगा कपड़ा उसे मिल जाए, इस कपड़े को शक्ति का स्वरूप माना जाता है.

चौथे दिन यहां भक्तों की लंबी कतार लगती है। हर कोई बस देवी के मासिक धर्म के खून से भीगा हुआ कपड़ा पाना चाहता है। इस कपड़े को शक्ति का रूप माना जाता है।

 

 

 

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