कैसे पड़ा कृष्ण के बाल रूप का नाम लड्डू गोपाल? यहां जानें मनमोहक कथा

नई दिल्ली: आज पूरे भारत में श्री कृष्ण जन्माष्टमी बहुत ही धूमधाम से मनाई जा रही। आज के दिन मथुरा में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। भारत के हर एक मंदिर में कृष्ण के बाल रूप की पूजा होती है। आज हम आपको बताएंगे कि भगवान के बालरूप का नाम लड्डू गोपाल कैसे पड़ा। […]

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कैसे पड़ा कृष्ण के बाल रूप का नाम लड्डू गोपाल? यहां जानें मनमोहक कथा

Neha Singh

  • August 26, 2024 7:58 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: आज पूरे भारत में श्री कृष्ण जन्माष्टमी बहुत ही धूमधाम से मनाई जा रही। आज के दिन मथुरा में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। भारत के हर एक मंदिर में कृष्ण के बाल रूप की पूजा होती है। आज हम आपको बताएंगे कि भगवान के बालरूप का नाम लड्डू गोपाल कैसे पड़ा।

ये है मनमोहक कथा

लड्डू गोपाल की कथा के अनुसार, भक्ति काल में संत कुंभनदास वृंदावन में रहते थे। संत कुंभनदास हमेशा भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और पूरे नियम से भगवान कृष्ण की सेवा करते थे, वे कभी उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाते थे, ताकि उनकी सेवा में कोई बाधा न आए। एक दिन उन्हें वृंदावन में ही एक स्थान पर भागवत कथा सुनाने का निमंत्रण मिला, पहले तो उन्होंने मना कर दिया लेकिन लोगों के आग्रह पर वे कथा सुनाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके वे प्रतिदिन कथा सुनाकर लौट आएंगे, ताकि भगवान की सेवा का नियम न छूटे।

जाते समय संत कुंभनदास ने अपने बेटे से कहा कि उन्होंने भोग तैयार कर लिया है, बस तुम्हें समय पर ठाकुर जी को भोग लगाना है। उनका बेटा रघुनंदन छोटा था, वह समझता था कि जब भोग लगाया जाता है तो भगवान स्वयं आकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इधर कुंभनदास ने अपने बेटे रघुनंदन को समझाया और वहां से चले गए। इसके बाद रघुनंदन ने भोजन की थाली समय पर ठाकुर जी के सामने रख दी और सरल मन से निवेदन किया कि ठाकुर जी आकर भोग ग्रहण करें, उसके मन में यह छवि थी कि वह आकर अपने हाथों से भोजन करेंगे, जैसे हम सब करते हैं। उसने बार-बार ठाकुर जी से निवेदन किया लेकिन भोजन वैसा ही रहा।

बाल रूप ने प्रकट हुए भगवान

अब रघुनंदन दुखी हो गए और रोने लगे कि ठाकुरजी आकर भोजन ग्रहण करें, जिसके बाद ठाकुरजी ने बालक का रूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए। इससे रघुनंदन बहुत प्रसन्न हुए। रात को जब कुंभनदास जी वापस लौटे और पूछा- बेटा, क्या तुमने ठाकुर जी को भोग लगाया? रघुनंदन ने कहा- हां, उसने प्रसाद मांगा था, तब बेटे ने कहा कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया, उसने सोचा कि बालक को भूख लगी होगी इसलिए उसने खुद ही सारा भोजन खा लिया होगा।

अब यह रोज का नियम हो गया कि कुंभनदास जी भोजन की थाली लेकर जाते और रघुनंदन ठाकुर जी को भोग लगाता और जब लौटकर प्रसाद मांगते तो उन्हें यही जवाब मिलता कि सारा भोजन ठाकुर जी ने खा लिया। कुंभनदास जी को अब लगने लगा कि उनका बेटा झूठ बोलने लगा है।

ऐसे पड़ा लड्डू गोपाल नाम 

इस बात का पता लगाने के लिए एक दिन संत कुंभनदास ने लड्डू बनाए और थाली सजाई और छिपकर देखने लगे कि बालक क्या करता है, रघुनंदन ने हमेशा की तरह ठाकुरजी को पुकारा तो ठाकुरजी बालक रूप में प्रकट होकर लड्डू खाने लगे। यह देखकर कुंभनदास जी दौड़े हुए आए और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे।

उस समय ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू उनके मुंह में जाने ही वाला था कि वे गायब हो गए, तभी से उनकी इसी रूप में पूजा होती है और वे लड्डू गोपाल के नाम से जाने जाने लगे।

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