नई दिल्ली: सोशल मीडिया का उपयोग आजकल जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, और अन्य प्लेटफार्मों पर लगातार सक्रिय रहना अब सामान्य बात है। हालांकि, इस वर्चुअल कनेक्टिविटी के बावजूद, इसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को अनदेखा कतई नहीं किया जा सकता है खासकर नींद की […]
नई दिल्ली: सोशल मीडिया का उपयोग आजकल जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, और अन्य प्लेटफार्मों पर लगातार सक्रिय रहना अब सामान्य बात है। हालांकि, इस वर्चुअल कनेक्टिविटी के बावजूद, इसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को अनदेखा कतई नहीं किया जा सकता है खासकर नींद की गुणवत्ता पर इसके प्रभाव को। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर देर रात तक एक्टिव रहना नींद की गुणवत्ता और अवधि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
सोशल मीडिया पर देर रात तक समय बिताने से नींद की गुणवत्ता में कमी आ सकती है। एक अध्ययन के अनुसार, रात को नींद से पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से नींद की शुरुआत में परेशानी होती है। इसकी वजह से नींद का चक्र गड़बड़ा जाता है, जिससे गहरी नींद की कमी हो जाती है। अमेरिका की स्लीप फाउंडेशन के अनुसार, नींद की कमी से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि चिंता और अवसाद की संभावना बढ़ जाती है।
डिजिटल मीडिया के निरंतर उपयोग के कारण, उपयोगकर्ता देर रात तक सक्रिय रहते हैं, जिससे उनकी नींद की आदतों में बदलाव आ जाता है। एक शोध के मुताबिक, जो लोग रात में सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, उनके सोने का समय औसतन 30 से 60 मिनट कम हो जाता है। इसके अलावा, नींद में बार-बार खलल डालने की संभावना भी बढ़ जाती है, जिससे अच्छी नींद प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
नींद की कमी के साथ-साथ, सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तनाव, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याओं की बढ़ती संख्या भी इस समस्या से जुड़ी हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, रात को सोशल मीडिया पर समय बिताने से तनाव का स्तर बढ़ सकता है, जो नींद की समस्याओं को और बढ़ा देता है। तनाव और चिंता की बढ़ती स्थिति नींद को प्रभावित करती है और इससे नींद की गुणवत्ता में और कमी आ जाती है।
सोशल मीडिया का उपयोग करते समय स्मार्टफोन और कंप्यूटर से निकलने वाली ब्लू लाइट भी नींद पर प्रभाव डालती है। ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को रोकती है, जो नींद के लिए जिम्मेदार होता है। इसके परिणामस्वरूप, लोग नींद में परेशानी का सामना करते हैं और गहरी नींद प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।
1. सोने से पहले स्क्रीन समय में कटौती: सोने से कम से कम एक घंटे पहले स्क्रीन पर समय बिताने से बचें। इससे नीली रोशनी के संपर्क में आने का समय कम होगा और मेलाटोनिन के स्तर में सुधार होगा।
2. नींद की आदतों को सुधारें: नियमित सोने और जागने का समय निर्धारित करें, ताकि शरीर की नींद की घड़ी सही समय पर काम कर सके।
3. डिजिटल डिटॉक्स: कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से पूरी तरह से दूर रहना, विशेषकर रात के समय, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है।
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