बांग्लादेश के हिंदू मंदिर का क्या हैं इतिहास….What is the history of Hindu temple of Bangladesh….
नई दिल्ली : बांग्लादेश में हिंसा, विरोध प्रदर्शन और अजारकता से हालात इतने बिगड़ गए कि देश की कमान संभालने वाली शेख हसीना को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा ,और देश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ा.बांग्लादेश सांस्कृतिक, धार्मिक धरोहरों से समृद्ध वाला देश है. भले ही बांग्लादेश की ज्यादातर आबादी मुस्लिम है, लेकिन वहां पर कई हिंदू और हिंदू मंदिर भी हैं. तो आइये जानते हैं .वहां के हिंदू मंदिरों के बारे में…
कांताजी या कांतानगर मंदिर बांग्लादेश के दिनाजपुर शहर से केवल 12 किमी की दूरी पर है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी के अंत में दिनाजपुर के महाराजा प्राणनाथ ने करवाया था. इस मंदिर में भगवान कृष्ण और रुक्मिणी को मूर्ति है. कांताजी मंदिर एक ऊंचे मंच पर खड़ा था. लेकिन 1897 में आए भूकंप के कारण मंदिर के शिखर नष्ट हो गए. इस मंदिर में महाभारत और रामायण जैसे हिंदू पुराणों के दृश्य को बयां करने वाले टेरोकोटा कला अंकित हैं.
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में ढाकेश्वरी मंदिर है. यहां का राष्ट्रीय मंदिर कहा जाता है, इस मदिंर का निर्माण 12वीं शताब्दी में सेन वंश के राजा बलाल ने कराया था. 1996 में आधिकारिक तौर पर यह राष्ट्रीय मंदिर के रूप में नामित हुआ. यह मंदिर हिंदू देवी ढाकेश्वरी को समर्पित है, जिसे देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है और यहां पर धूमधाम से दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता है.
यह मंदिर सतखीरा जिले में है .इस मंदिर में मां काली की पूजा होती है. यहां काली पूजा का उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन इनमें से कई मंदिरों की स्थिति बहुत दयनीय हैं.क्योंकि इन मंदिरों को देखभाल और संरक्षण नहीं मिला. इसके अलावा इन मंदिरों पर समय-दर-समय अतिक्रमण और हमले भी कारण बनें.फिलहाल बांग्लादेश में बिगड़ते हालात और मंदिरों पर हमले किए जाने की घटना बेहद निराशाजनक है. क्योंकि बांग्लादेश में स्थित हिंदू मंदिर यहां की धार्मिकता और सांप्रदायिक सौहार्द की पहचान है.
ये भी पढ़े :बांग्लादेश में जब मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, तब ओवैसी क्यों थे चुप?