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इस मंदिर में आज भी जारी है भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेलना, मिलता है दिव्य अनुभव

नई दिल्ली: ओंकारेश्वर मंदिर, जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है, एक प्राचीन और प्रसिद्ध शिवालय है। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती की एक अनोखी परंपरा की चर्चा आजकल खूब हो रही है। इस परंपरा के अनुसार, प्रतिदिन रात को भगवान शिव और माता पार्वती मंदिर में चौपड़ (पासा) खेलते हैं। सुबह […]

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  • August 4, 2024 12:52 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 months ago

नई दिल्ली: ओंकारेश्वर मंदिर, जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है, एक प्राचीन और प्रसिद्ध शिवालय है। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती की एक अनोखी परंपरा की चर्चा आजकल खूब हो रही है। इस परंपरा के अनुसार, प्रतिदिन रात को भगवान शिव और माता पार्वती मंदिर में चौपड़ (पासा) खेलते हैं। सुबह के समय सजाए गए चौसर बिखरे हुए पाए जाते हैं, जिससे श्रद्धालुओं और भक्तों के बीच कई तरह की चर्चा और कयास लगाए जाते हैं। लोगों कै ऐसा मानना है कि यहां आज भी भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ का खेल खेलने के लिए आते हैं। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें।

चौपड़ के खेल का दिव्य दृश्य

यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और इसमें भगवान शिव और माता पार्वती को चौपड़ के खेल में देखा जाता है। रात के समय मंदिर में विशेष रूप से सजाया गया चौसर (चौपड़ का बोर्ड) भक्तों के लिए एक खास आकर्षण होता है। देवताओं की कृपा से सजाए गए इस बोर्ड पर हर रात खेल खेला जाता है और सुबह के समय यह चौसर बिखरा हुआ पाया जाता है। रात को मंदिर की विशेष सजावट की जाती है। भक्त इस सजावट की प्रक्रिया में शामिल होते हैं और विशेष पूजा विधियों के माध्यम से चौपड़ को सुंदरता से सजाते हैं। इस प्रक्रिया में मंदिर के पुजारी, शास्त्री, और स्थानीय भक्त मिलकर एक अद्भुत वातावरण तैयार करते हैं।

अद्भुत होता है सुबह का दृश्य

जानकारी के मुताबिक सुबह के समय, जब मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, तो वे चौसर को बिखरा हुआ पाते हैं। यह दृश्य श्रद्धालुओं को आश्चर्यचकित करता है और उनकी आस्था को और भी गहरा करता है। बिखरे हुए चौसर और पासे यह संकेत देते हैं कि खेल समाप्त हो चुका है, और यह भगवान शिव और माता पार्वती की उपस्थिति का प्रतीक होता है। इस मामले में स्थानीय भक्तों का कहना है कि यह परंपरा उनके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का संचार करती है। वे मानते हैं कि इस खेल के माध्यम से देवताओं के दर्शन और आशीर्वाद से उनका जीवन सुखमय और समृद्ध होता है।

श्रद्धालुओं की प्रतिक्रियाएँ

स्थानीय श्रद्धालुओं के अनुसार, यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है और इस पर विश्वास करना उनके धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। एक स्थानीय भक्त ने बताया, “हमारे लिए यह परंपरा बहुत महत्वपूर्ण है। जब भी हम सुबह मंदिर में आते हैं और बिखरे हुए चौसर देखते हैं, तो यह हमें भगवान शिव और माता पार्वती की उपस्थिति का अहसास कराता है।” ओंकारेश्वर मंदिर की यह अनोखी परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करती है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई को भी दर्शाती है। हर दिन जब चौसर बिखरे हुए मिलते हैं, तो यह एक नई दिन की शुरुआत और ईश्वर की अनंत कृपा का प्रतीक होता है। ओंकारेश्वर मंदिर में यह दिव्य खेल न केवल धार्मिक महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह भक्तों के लिए एक अद्वितीय और प्रेरणादायक अनुभव भी प्रदान करता है।

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