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जानें सावन महीने का महत्व, क्यों निकलती है कावड़ यात्रा?

नई दिल्ली: हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सावन का महीना भगवान शिव का महीना माना जाता है और भगवान शिव को प्रसन्न करने लिए हर वर्ष कई श्रद्धालु कड़ाव यात्रा के लिए जाते है, जिन्हें कांवड़िया और भोला के नाम से भी जाना जाता है. श्रद्धालु उत्तराखंड में स्तिथ हरिद्वार से गंगा नदी का […]

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जानें सावन महीने का महत्व, क्यों निकलती है कावड़ यात्रा?
  • July 9, 2024 4:37 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 months ago

नई दिल्ली: हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सावन का महीना भगवान शिव का महीना माना जाता है और भगवान शिव को प्रसन्न करने लिए हर वर्ष कई श्रद्धालु कड़ाव यात्रा के लिए जाते है, जिन्हें कांवड़िया और भोला के नाम से भी जाना जाता है. श्रद्धालु उत्तराखंड में स्तिथ हरिद्वार से गंगा नदी का जल एकत्रित कर अपने आस-पास के मंदिरों में जाकर, महाकाल का सबसे पवित्र प्रतीक कहा जाने वाला ‘शिवलिंग’ पर वह जल चढ़ाते है. कांवड़िए गंगा जल लेने के लिए कई दिनों तक पैदल एवं गाड़ियों से यात्रा करते है और ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में जो भक्त पूरे विधि विधान के साथ महाकाल की पूजा अर्चना करता है, उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.

 

कब से शुरू हो रहे सावन

 

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू हो रहा है और सावन माह की त्रयोदशी तिथि पर आने वाली शिवरात्रि इस बार 2 अगस्त को मनाई जाएंगी. सावन के महीनें में इस बार पांच सोमवार पड़ रहे हैं. सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है, इसलिए ऐसी मान्यता भी है कि सोमवार के दिन जो भी कुँआरी कन्या व्रत और शिवजी की पूजा अर्चना करती है, उन्हें मनचाहा वर प्राप्त होता है व उनका वैवाहिक जीवन खुशहाली से बीतता है. सावन माह का समापन 19 अगस्त को होगा, जिस दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाएंगा।

 

हरिद्वार क्यों जाते है कांवड़िए

 

सावन के महीने में हर तरफ भक्तों में काफी उत्साह देखने को मिलता है और यह भी कहा जाता है कि जो कांवड़िया, कावड़ यात्रा के लिए गए है वह कावड़ को अपने कंधे से नीचे या ज़मीन पर नहीं रख सकते, हालांकि आज के समय में कई तरीको से कावड़ यात्रा की जाती है जैसे की डाक कांवड़, खड़ी कांवड़, दांडी कांवड़ और सामान्य कांवड़. वहीं हरिद्वार में हरि की पौड़ी को लेकर मान्यता है कि समुद्रमंथन के समय जब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत कलश को लेकर छीना-झपटी हो रही थी तो उस दौरान कुछ बूंदें हरिद्वार में ‘हर की पौड़ी’ पर गिर गई थीं. जिसकी वजह से वहां का जल बहुत पौराणिक माना जाता है और कांवड़िए जल भरने के लिए हरिद्वार जाते है.

 

 

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